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पुरुषार्थसिद्ध्युपाय गृह्णाति ) नहीं ग्रहण करता है ( तस्य ) उस पुरुष के लिये ( एकदेशविरतिः ) एकदेश त्याग का उपदेश (अनेन बीजेन) इस बीज से - नीचे लिखे हुए हेतु से (कथनीया) कहना चाहिये।
The disciple who, in spite of its great glory been demonstrated repeatedly, is not able to adopt the path of complete renunciation followed by the ascetics, should be inducted into the path of partial renunciation.
17.
यो यतिधर्ममकथयन्नुपदिशति गृहस्थधर्ममल्पमतिः । तस्य भगवत्प्रवचने प्रदर्शितं निग्रहस्थानम् ॥
(18)
अन्वयार्थ - ( यः ) जो (अल्पमतिः ) अल्प बुद्धि उपदेशक ( यतिधर्मम् ) मुनिधर्म का ( अकथयन्) उपदेश न देकर (गृहस्थधर्मम् ) गृहस्थधर्म का ( उपदिशति ) उपदेश देता है, ( तस्य ) उस उपदेशक को ( भगवत्प्रवचने) सर्वज्ञ-प्रणीत सिद्धान्त में (निग्रहस्थानम् ) दण्डपात्र ( प्रदर्शितं ) कहा गया है।
18. The imprudent teacher who preaches his disciple the dharma of the householder, when the dharma of the ascetic is required to be preached, deserves censure, as per the doctrine of the Omniscient Lord.
अक्रमकथनेन यतः प्रोत्सहमानोऽतिदूरमपि शिष्यः । अपदेऽपि सम्प्रतृप्तः प्रतारितो भवति तेन दुर्मतिना ॥
(19)
अन्वयार्थ ( यतः ) जिस कारण से ( तेन) उस ( दुर्मतिना ) दुर्बुद्धि के (अक्रमकथनेन) क्रम-विरुद्ध उपदेश देने से ( अतिदूरम् ) अत्यन्त अधिक
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