Book Title: Purushartha Siddhupaya
Author(s): Amrutchandracharya, Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 113
________________ पुरुषार्थसिद्ध्युपाय करके (तत्त्वोपलब्धिमूलं) तत्त्व प्राप्ति का मूलभूत कारण (सामायिकं बहुशः कार्यम् ) सामायिक अधिक रूप में करना चाहिये। 148. After renouncing all attachments and aversions, and adopting a sense of equanimity in all objects, one should practise, many times, periodic concentration (sāmāyika), the principal means to realize the true nature of the Self. रजनीदिनयोरन्ते तदवश्यं भावनीयमविचलितम् । इतरत्र पुनः समये न कृतं दोषाय तद्गुणाय कृतम् ॥ (149) अन्वयार्थ - (तत् ) वह सामायिक (रजनीदिनयोः अन्ते) रात और दिन के अन्त समय में - प्रात:काल एवं संध्या समय में (अविचलितम्) एकाग्रता-पूर्वक (अवश्यं भावनीयम्) अवश्य ही करना चाहिये। (पुनः इतरत्र समये कृतं) फिर दूसरे समय में किया हुआ (तत्) वह सामायिक (न दोषाय) दोष पैदा करने वाला नहीं होता है किन्तु (गुणाय कृतम् ) गुण पैदा करने वाला होता है। 149. Periodic meditation (sāmāyika) must be performed, without distraction, at the end of the night and the day (early morning and evening). If performed at other times, it is not improper, and is beneficial. सामायिकं श्रितानां समस्तसावद्ययोगपरिहारात् । भवति महाव्रतमेषामुदयेपि चरित्रमोहस्य॥ (150) अन्वयार्थ - (एषाम् ) इन (सामायिकं श्रितानां) सामायिक करने वाले पुरुषों के (समस्तसावद्ययोगपरिहारात् ) सम्पूर्ण पाप योगों का त्याग हो जाता है इसलिये 95

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