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पुरुषार्थसिद्धयुपाय इदमावश्यकषट्कं समतास्तववन्दनाप्रतिक्रमणम् । प्रत्याख्यानं वपुषो व्युत्सर्गश्चेति कर्तव्यम् ॥
(201)
अन्वयार्थ - (समतास्तववन्दनाप्रतिक्रमणम् ) समता, स्तवन, वन्दना, प्रतिक्रमण, (प्रत्याख्यानं ) प्रत्याख्यान, (वपुषो व्युत्सर्गः च) और कायोत्सर्ग (इति इदम् आवश्यकषट्कं) इस प्रकार ये छह आवश्यक (कर्तव्यम् ) करना चाहिये।
201. Equanimity (samata or sāmāyika), praising of Lord Jina (stav), prostrating in reverence to the worshipful (vandanā), repentance (pratikramana), renunciation (pratyākhyāna), and giving up attachment to the body (kāyotsarga), are the six essential duties to be performed.
सम्यग्दण्डो वपुषः सम्यग्दण्डस्तथा च वचनस्य । मनसः सम्यग्दण्डो गुप्तित्रितयं समनुगम्यम् ॥
(202)
अन्वयार्थ - (वपुषः सम्यग्दण्डः) शरीर को भले प्रकार वश में रखना, (तथा वचनस्य च सम्यग्दण्डः) उसी प्रकार वचन को भी पूर्णतया से वश में रखना, (मनसः सम्यग्दण्डः) मन को भी अच्छी तरह से वश में रखना, (गुप्तित्रितयं) ये तीन गुप्तियां ( समनुगम्यम् ) अच्छी तरह पालन करना चाहिये।
202. Controlling well the activities of the body, the speech, and the mind, is the threefold control (gupti).
The threefold control of body, speech and mind
(gupti) Achārya Umasvami’s Tattvārthsūtra: सम्यग्योगनिग्रहो गुप्तिः॥
(Ch.9-4)
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