Book Title: Purushartha Siddhupaya
Author(s): Amrutchandracharya, Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 184
________________ पुरुषार्थसिद्धयुपाय येनांशेन सुदृष्टिस्तेनांशेनास्य बन्धनं नास्ति । येनांशेन तु रागस्तेनांशेनास्य बन्धनं भवति ॥ (212) अन्वयार्थ - (येन अंशेन सुदृष्टिः) जिस अंश से आत्मा के सम्यग्दर्शन है (तेन अंशेन) उस अंश से अर्थात् उस सम्यग्दर्शन द्वारा ( अस्य बन्धनं नास्ति) इस आत्मा के कर्मबन्ध नहीं होता है। अर्थात् सम्यग्दर्शन कर्मबन्ध का कारण नहीं है। (तु) और (येन अंशेन रागः) जिस अंश से राग है, सकषाय परिणाम है ( तेन अंशेन अस्य) उस अंश से अर्थात् उस सकषाय परिणाम से इस आत्मा के (बन्धनं भवति) कर्मबन्ध होता है। 212. The disposition that features right faith in the soul does not result into bondage, whereas the disposition of passions like attachment results into bondage. येनांशेन ज्ञानं तेनांशेनास्य बन्धनं नास्ति । येनांशेन तु रागस्तेनांशेनास्य बन्धनं भवति ॥ (213) अन्वयार्थ - (येन अंशेन ज्ञानं ) जिस अंश से आत्मा के सम्यग्ज्ञान है (तेन अंशेन ) उस अंश से अर्थात् उस सम्यग्ज्ञान द्वारा ( अस्य बन्धनं नास्ति) इस आत्मा के कर्मबन्ध नहीं होता है। अर्थात् सम्यग्ज्ञान कर्मबन्ध का कारण नहीं है। (तु) और (येन अंशेन रागः) जिस अंश से राग है, सकषाय परिणाम है ( तेन अंशेन अस्य) उस अंश से अर्थात् उस सकषाय परिणाम से इस आत्मा के (बन्धनं भवति) कर्मबन्ध होता है। 213. The disposition that features right knowledge in the soul does not result into bondage, whereas the disposition of passions like attachment results into bondage. 166

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