________________
पुरुषार्थसिद्धयुपाय
येनांशेन चरित्रं तेनांशेनास्य बन्धनं नास्ति । येनांशेन तु रागस्तेनांशेनास्य बन्धनं भवति ॥
(214)
अन्वयार्थ - (येन अंशेन चरित्रं ) जिस अंश से आत्मा के चारित्र है ( तेन अंशेन) उस अंश से अर्थात् उस चारित्र द्वारा (अस्य बन्धनं नास्ति) इस आत्मा के कर्मबन्ध नहीं होता है। अर्थात् चारित्र कर्मबन्ध का कारण नहीं है। (तु) और (येन अंशेन रागः) जिस अंश से राग है, सकषाय परिणाम है (तेन अंशेन अस्य) उस अंश से अर्थात् उस सकषाय परिणाम से इस आत्मा के (बन्धनं भवति) कर्मबन्ध होता है।
214. The disposition that features right conduct in the soul does not result into bondage, whereas the disposition of passions like attachment results into bondage.
योगात्प्रदेशबन्धः स्थितिबन्धो भवति यः कषायात्तु । दर्शनबोधचरित्रं न योगरूपं कषायरूपं च ॥
(215)
अन्वयार्थ - (योगात्प्रदेशबन्धः ) योग से प्रदेशबन्ध (भवति) होता है (कषायात्) कषाय से (स्थितिबन्धः भवति) स्थितिबन्ध होता है (तु) परन्तु (दर्शनबोधचरित्रं) सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र (न योगरूपं कषायरूपं च ) न तो योगरूप ही है और न कषायरूप ही है।
215. The threefold activity (yoga) causes nature-bondage (pradeśa bandha), and the passions (kaşaya) cause durationbondage (sthiti bandha). However, right faith, knowledge, and conduct do neither take the form of the threefold activity nor of the passions.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
__ 167