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पुरुषार्थसिद्ध्युपाय शिक्षणादीनि) सुनना, संग्रह, पढ़ना-पढ़ाना आदि (कदाचन) कभी भी (न कुर्वीत) नहीं करना चाहिये।
145. One should never listen to, collect, or learn, evil stories that arouse passions such as attachment, and are largely nonsensical.
सर्वानर्थप्रथमं मथनं शौचस्य सद्म मायायाः । दूरात्परिहरणीयं चौर्यासत्यास्पदं द्यूतम् ॥
(146)
अन्वयार्थ - (सर्वानर्थप्रथम) सम्पूर्ण अनर्थों में पहला (शौचस्य मथनं) संतोष-वृत्ति को नष्ट करने वाला (मायायाः सद्म) माया का घर (चौर्यासत्यास्पदं) चोरी और झूठ का स्थान ऐसा (द्यूतम् ) जूआ खेलना (दूरात् परिहरणीयं) दूर से ही छोड़ देना चाहिये।
146. Foremost among the (seven) addictions, destroyer of contentment, abode of deceitfulness, and seat of theft and falsehood, gambling should be abandoned from a distance.
एवंविधमपरमपि ज्ञात्वा मुश्चत्यनर्थदण्डं यः । तस्यानिशमनवद्यं विजयमहिंसाव्रतं लभते ॥
(147)
अन्वयार्थ - (यः) जो पुरुष ( एवं विधम् ) इस प्रकार (अपरमपि) दूसरे भी (अनर्थदण्डम् ज्ञात्वा) अनर्थदण्डों को जानकर उन्हें (मुञ्चति) छोड़ देता है (तस्य) उस पुरुष का (अहिंसाव्रतं) अहिंसाव्रत (अनिशम् ) निरन्तर (अनवद्यं) निर्दोष (विजयम् ) विजय को (लभते) प्राप्त होता है।
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