Book Title: Purushartha Siddhupaya
Author(s): Amrutchandracharya, Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 133
________________ पुरुषार्थसिद्ध्युपाय भावनापरिणतः ) इस प्रकार की भावना रखने वाला पुरुष ( अनागतमपि इदं शीलम् पालयेत् ) मरणकाल आने से पहले ही इस शील का पालन कर लेता है। 176. “I shall certainly, at the approach of death, observe sallekhana in the proper manner." Meditating persistently in this manner, the observance of the vow of sallekhana starts much before the approach of death. मरणेऽवश्यंभाविनि कषायसल्लेखनातनुकरणमात्रे । रागादिमन्तरेण व्याप्रियमाणस्य नात्मघातोऽस्ति ॥ अन्वयार्थ ( मरणे अवश्यं भाविनि ) मरण के नियम से उत्पन्न होने पर ( कषायसल्लेखनातनुकरणमात्रे) कषाय सल्लेखना के सूक्ष्म करने मात्र में ( रागादिमन्तरेण ) राग-द्वेष के बिना ( व्याप्रियमाणस्य ) व्यापार करने वाले सल्लेखना धारण करने वाले पुरुष के ( आत्मघातः न अस्ति ) आत्मघात नहीं है। — (177) 177. When death is imminent, the vow of sallekhanā is observed by progressively slenderizing the body and the passions. Since the person observing sallekhana is devoid of all passions like attachment, it is not suicide. यो हि कषायाविष्टः कुम्भकजलधूमकेतुविषशस्त्रैः । व्यपरोपयति प्राणान् तस्य स्यात्सत्यमात्मवधः ॥ (178) अन्वयार्थ - ( हि ) निश्चय करके (यः) जो पुरुष ( कषायाविष्टः ) कषाय से रंजित होता हुआ (कुम्भकजलधूमकेतुविषशस्त्रैः) श्वास रोकना, जल, अग्नि, विष और शस्त्रों के द्वारा ( प्राणान् ) प्राणों को (व्यपरोपयति ) नष्ट करता है ( तस्य ) उसके ( आत्मवधः सत्यम् स्यात् ) आत्मवध वास्तव में होता है। 115

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