Book Title: Purushartha Siddhupaya
Author(s): Amrutchandracharya, Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 132
________________ पुरुषार्थसिद्धयुपाय इयमेकैव समर्था धर्मस्वं मे मया समं नेतुम् । सततमिति भावनीया पश्चिमसल्लेखना भक्त्या ॥ (175) अन्वयार्थ - (इयम् एका एव) यह एक ही ( मे धर्मस्वं) मेरे धर्मरूप द्रव्य को (मया समं नेतुम् ) मेरे साथ ले जाने के लिए (समर्था) समर्थ है (इति सततम्) इस प्रकार निरन्तर (भक्त्या पश्चिमसल्लेखना भावनीया) भक्तिपूर्वक मरणकाल में सल्लेखना का चिन्तवन करना चाहिये। 175. The householder should court voluntary death (sallekhanā) at the end of his life, always thinking fervently that only this (sallekhanā) will enable him to carry with him his wealth of piety. Sallekhanā - greeting death when it approaches Āchārya Umasvami's Tattvārthsūtra: मारणान्तिकी सल्लेखनां जोषिता॥ (Ch. 7 - 22) व्रतधारी श्रावक [मारणान्तिकीं] मरण के समय होने वाली [सल्लेखना] सल्लेखना को [जोषिता] प्रीतिपूर्वक सेवन करें। The householder courts voluntary death at the end of his life. मरणान्तेऽवश्यमहं विधिना सल्लेखनां करिष्यामि । इतिभावनापरिणतोऽनागतमपि पालयेदिदं शीलम् ॥ (176) अन्वयार्थ - (अहं) मैं (मरणान्ते) मरणकाल में (विधिना) विधिपूर्वक (सल्लेखनां अवश्यम् करिष्यामि) सल्लेखना को अवश्य धारण करूंगा (इति . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 114

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