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पुरुषार्थसिद्ध्युपाय परदारगमन और चोरी आदि ये सभी ( कदाचन अपि) कभी भी ( न चिन्त्याः ) नहीं चिन्तवन करने चाहियें ( यस्मात् ) क्योंकि ( केवलं पापफलं ) इनके चिन्तवन करने से केवल पाप ही फल मिलता है।
141. One should never engage oneself in thoughts such as hunting, victory, defeat, battle, adultery, and theft, as sin is the only outcome of such evil thoughts.
विद्यावाणिज्यमषीकृषिसेवाशिल्पजीविनां पुंसाम् । पापोपदेशदानं कदाचिदपि नैव वक्तव्यम् ॥
अन्वयार्थ
(विद्यावाणिज्यमषीकृषिसेवाशिल्पजीविनां पुंसाम् ) विद्या - ज्ञान, वाणिज्य-व्यापार, मषी - स्याही, कृषि खेती, सेवा-चाकरी, शिल्प-कलाकौशल इन छह प्रकार के उद्योगों द्वारा आजीविका करनेवाले पुरुषों के लिये (पापोपदेशदानं) पापरूप उपदेश का दान ( कदाचित् अपि) कभी भी (नैव वक्तव्यम्) नहीं कहना चाहिये।
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(142)
142. Those who live on knowledge skills (astrology etc.), trade, writing, agriculture, service, and art and craft, should never be given sinful advice.
भूखननवृक्षमोट्टनशाड्वलदलनाम्बुसेचनादीनि । निः कारणं न कुर्याद्दलफलकुसुमोच्चयानपि च ॥
(143)
अन्वयार्थ - (भूखननवृक्षमोट्टनशाड्वलदलनाम्बुसेचनादीनि ) पृथ्वी को खोदना, वृक्षों को उखाड़ना, घास आदि को रौंदना या नष्ट-भ्रष्ट करना, जल को
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