Book Title: Purushartha Siddhupaya
Author(s): Amrutchandracharya, Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 116
________________ पुरुषार्थसिद्ध्युपाय सामायिकसंस्कारं प्रतिदिनमारोपितं स्थिरीकर्तुम् । पक्षार्द्धयोर्द्वयोरपि कर्तव्योऽवश्यमुपवासः ॥ अन्वयार्थ (प्रतिदिनं आरोपितं ) प्रतिदिन किये जाने वाले (सामायिकसंस्कारं ) सामायिकरूप संस्कार (स्थिरीकर्तुम् ) स्थिर रखने के लिये ( द्वयोः अपि पक्षार्द्धयोः ) दोनों ही पक्षों के आधे-आधे समय में अर्थात् प्रत्येक अष्टमी और प्रत्येक चतुर्दशी में ( उपवासः अवश्य कर्तव्यः ) उपवास अवश्य करना चाहिये। - (151) 151. For the sake of strengthening the performance of daily mediatation (sāmāyika), one must undertake fasting twice each lunar fortnight (proşadhopavāsa). मुक्तसमस्तारम्भः प्रोषधदिनपूर्ववासरस्यार्द्ध । उपवासं गृह्णीयान्ममत्वमपहाय देहादौ ॥ 98 (152) अन्वयार्थ - ( प्रोषधदिनपूर्ववासरस्यार्द्धे) जो उपवास करने का दिन है उस के पहले दिन के उत्तरार्द्ध में (मुक्तसमस्तारम्भः ) समस्त आरम्भों का त्याग करते हुये ( देहादौ ममत्वम् अपहाय ) अपने शरीर आदि बाह्य पदार्थों में ममत्वभाव छोड़कर (उपवासं गृह्णीयात्) उपवास धारण करें। 152. Free from all routine activities, and giving up attachment to own body etc., one should commence fasting from mid-day prior to the day of fasting (the eighth and the fourteenth day of each lunar fortnight).

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