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पुरुषार्थसिद्ध्युपाय
encouragement of those who commit it independently of oneself. Imperfect renunciation (apavādiki nivritti) is of many kinds.
स्तोकै केन्द्रियघाताद्गृहिणां सम्पन्नयोग्यविषयाणाम् । शेषस्थावरमारणविरमणमपि भवति करणीयम् ॥
(77)
अन्वयार्थ - (सम्पन्नयोग्यविषयाणाम् ) इन्द्रिय विषयों के न्यायपूर्वक सेवन करने वाले (गृहिणां) गृहस्थों को ( स्तोकैकेन्द्रियघातात् ) अन्य एकेद्रिय के घात के सिवा (शेषस्थावरमारणविरमणम् अपि ) बाकी के स्थावर जीवों के मारने का त्याग भी ( करणीयम् भवति) करना योग्य है।
77.
Householders practising judicious sense-gratification, cause injury to a limited number of one-sensed beings. They should desist from injury to other one-sensed (sthāvara) beings.
अमृतत्वहेतुभूतं परममहिंसारसायनं लब्ध्वा ।
अवलोक्य बालिशानामसमञ्जसमाकुलैर्न भवितव्यम् ॥ (78)
अन्वयार्थ - ( अमृतत्वहेतुभूतं ) अमृतपने अथवा मोक्ष का कारणभूत ( परमम्) उत्कृष्ट ( अहिंसारसायनं ) अहिंसारूपी रसायन को ( लब्ध्वा ) पाकर (बालिशानाम्) मूर्खों के ( असमञ्जसम् ) अयोग्य अथवा प्रतिकूल बर्ताव को ( अवलोक्य ) देखकर ( आकुलैः ) व्याकुल ( न भवितव्यम् ) नहीं होना चाहिये।
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78. Having acquired the elixir of ahimsa that leads to immortality, one should not get perturbed on seeing the improper behaviour of the ignorant.