Book Title: Purushartha Siddhupaya
Author(s): Amrutchandracharya, Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

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Page 82
________________ पुरुषार्थसिद्धयुपाय 95. And the fourth kind of falsehood, in general terms, is of three types – that speech which is condemnable (garhita), sinful (sāvadya), and unpleasant (apriya). पैशुन्यहासगर्भं कर्कशमसमञ्जसं प्रलपितं च । अन्यदपि यदुत्सूत्रं तत्सर्वं गर्हितं गदितम् ॥ (96) अन्वयार्थ - (पैशून्यहासगर्भं) पिशुनपना अर्थात् चुगलखोरी, दूसरों की झूठी सांची बुराई करना, हंसी सहित वचन बोलना (कर्कशम्) क्रोधपूर्ण, दूसरे के तिरस्कार करने वाले वचन बोलना (असमञ्जसं) कुछ का कुछ असम्बद्ध बोलना (प्रलपितं च) जिन वचनों का कोई उपयुक्त अर्थ नहीं है ऐसे निरर्थक एवं नि:स्सार वचनों का बोलना (अन्यत् अपि यत् उत्सूत्रं ) और भी जो वचन भगवत् आज्ञा से विरुद्ध - जिनागम कथित सूत्रों की आज्ञा के विरुद्ध हैं (तत्सर्वं) वह सब वचन (गर्हितं) निंद्य (गदितम् ) कहा गया है। 96. Condemnable (garhita) speech comprises statements which may be spiteful and contemptuous, harsh, nonsensical, useless gossip, and also those contrary to the Scripture. छेदनभेदनमारणकर्षणवाणिज्यचौर्यवचनादि । तत्सावा यस्मात्प्राणिवधाद्याः प्रवर्तन्ते ॥ (97) अन्वयार्थ - (छेदनभेदनमारणकर्षणवाणिज्यचौर्यवचनादि) छेदना, भेदना, मारना, खेती, वाणिज्य और चोरी आदि के जो वचन हैं (तत् सावधं) वे दोष सहित वचन हैं (यस्मात् ) क्योंकि (प्राणिवधाद्याः) इन वचनों से प्राणियों के वध आदि हिंसा के कार्य (प्रवर्तन्ते ) होते हैं। 64

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