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पुरुषार्थसिद्ध्युपाय present in it (bhāva), is the second kind of falsehood. For example, to say, "Pitcher is here,” when it is not actually there.
वस्तु सदपि स्वरूपात्पररूपेणाभिधीयते यस्मिन् । अनृतमिदं च तृतीयं विज्ञेयं गौरिति यथाश्वः ॥
(94)
अन्वयार्थ - (यस्मिन् ) जिस वचन में (स्वरूपात् वस्तु सत् अपि) अपने स्वरूप से वस्तु उपस्थित है तो भी ( पररूपेण अभिधीयते) परस्वरूप से कहा जाता है (इदं तृतीयं अनृत विज्ञेयं) यह असत्य का तीसरा भेद समझना चाहिये। (यथा गौः अश्वः इति ) जिस प्रकार गौ को घोड़ा कह देना।
94. A statement that pronounces the existence of an object as another object, with respect to the nature of the substance (dravya), is the third kind of falsehood. For example, to call a cow, ahorse.
गर्हितमवद्यसंयुतमप्रियमपि भवति वचनरूपं यत् । सामान्येन त्रेधा मतमिदमनृतं तुरीयं तु ॥
(95)
अन्वयार्थ - (तु) और (यत् वचनरूपं) जो वचन स्वरूप (गर्हितम् ) निंदनीय (अवद्यसंयुतम् ) दोष-सहित (अपि अप्रियम् ) और अप्रिय-कठोर (भवति) होता है (इति) इस प्रकार (इदम्) यह (तुरीयं) चौथा (अनृतं) झूठ (सामान्येन) सामान्य रीति से (त्रेधा) तीन प्रकार (मतम् ) माना गया है।
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