Book Title: Purushartha Siddhupaya
Author(s): Amrutchandracharya, Vijay K Jain
Publisher: Vikalp

View full book text
Previous | Next

Page 102
________________ पुरुषार्थसिद्धयुपाय ( हिंसाविरतैः ) हिंसा से विरक्त होने वाले पुरुषों को (रात्रिभुक्तिः अपि) रात्रि भोजन भी ( त्यक्तव्या) छोड़ देना चाहिये। 129. Those who take meals at night necessarily commit himsā. Therefore, one who wishes to avoid hiņsā must renounce eating at night. रागाद्युदयपरत्वादनिवृत्ति तिवर्तते हिंसाम् । रात्रिं दिवमाहरतः कथं हि हिंसा न संभवति ॥ (130) अन्वयार्थ - (अनिवृत्तिः) त्याग नहीं करना (रागाद्युदयपरत्वात्) रागादि के उदय के परतन्त्र होने से अर्थात् रागाधिक्य होने से ( हिंसाम् न अतिवर्तते) हिंसा से नहीं बचा जा सकता है, (हि) तब (रात्रिं दिवम् आहरतः) रात्रि-दिन भोजन करने वाले को ( हिंसा कथं न संभवति) हिंसा क्यों नहीं लगेगी? अर्थात् उसे अवश्य हिंसा लगती है। 130. Non observance of vows (non-renunciation) entails dependence on passions like attachment, and therefore, hiņsā is not thereby excluded. How can one who takes food day and night possibly avoid himsā? यद्येवं तर्हि दिवा कर्तव्यो भोजनस्य परिहारः । भोक्तव्यं तु निशायां नेत्थं नित्यं भवति हिंसा ॥ (131) अन्वयार्थ - (यदि एवं) यदि ऐसा है कि दिन-रात भोजन करने से हिंसा होती है (तर्हि ) तो (दिवा भोजनस्य परिहारः कर्तव्यः) दिन में भोजन का परिहार करना योग्य है (तु) और (निशायां भोक्तव्यं) रात्रि में भोजन करना चाहिये (इत्थं) . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 84

Loading...

Page Navigation
1 ... 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210