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पुरुषार्थसिद्धयुपाय
यद्वेदरागयोगान्मैथुनमभिधीयते तदब्रह्म । अवतरति तत्र हिंसा वधस्य सर्वत्र सद्भावात् ॥
(107)
अन्वयार्थ - ( यत् वेदरागयोगात् ) पुंवेद और स्त्रीवेदरूप राग-परिणाम के सम्बंध से ( यत् ) जो (मैथुनम् ) स्त्री-पुरुषों की काम चेष्टा होती है (तत्) उसको (अब्रह्म) अब्रह्म ( अभिधीयते) कहते हैं। (तत्र सर्वत्र ) वहां सब अवस्थाओं में ( वधस्य सद्भावात् ) जीवों का वध होने से ( हिंसा अवतरति) हिंसा घटित होती
107. Unchastity (abrahma) is copulation arising from sexual desire. There is all-round injury to the living in copulation and, therefore, it is himsā.
Unchastity Achārya Umasvami’s Tattvārthsūtra: मैथुनमब्रह्म॥
(Ch.7-16)
[मैथुनमब्रह्म] जो मैथुन है सो अब्रह्म अर्थात् कुशील है।
Copulation is unchastity.
हिंस्यन्ते तिलनाल्यां तप्तायसि विनिहिते तिला यद्वत् । बहवो जीवा योनौ हिंस्यन्ते मैथुने तद्वत् ॥
(108)
अन्वयार्थ - ( यद्वत् ) जिस प्रकार (तिलनाल्यां) तिलों की नली में (तप्तायसि विनिहिते) तपाये हुए लोहे के डालने पर (तिला हिंस्यन्ते ) तिल नष्ट हो जाते हैं -
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