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पुरुषार्थसिद्धयुपाय
धर्ममहिंसारूपं संशृण्वन्तोऽपि ये परित्यक्तुम् । स्थावरहिंसामसहास्त्रसहिंसां तेऽपि मुञ्चन्तु ॥
(75)
अन्वयार्थ - (धर्म अहिंसारूपं) धर्म अहिंसारूप है इस बात को (संशृण्वन्तः अपि) भले प्रकार जानते हैं फिर भी (ये) जो पुरुष (स्थावरहिंसाम् परित्यक्तुम् ) स्थावर हिंसा के छोड़ने में (असहाः) असमर्थ हैं (ते अपि) वे भी (त्रस हिंसां मुञ्चन्तु) त्रस हिंसा को तो छोड़ दें।
75. Even after proper listening to the doctrine of ahimsā, those who are not able to renounce himsā of immobile beings (sthāvara jivas), should at least renounce himsā of mobile beings (trasa jivas).
कृतकारितानुमननैर्वाक्कायमनोभिरिष्यते नवधा । औत्सर्गिकी निवृत्तिर्विचित्रस्वरूपापवादिकी त्वेषा॥
(76)
अन्वयार्थ - (औत्सर्गिकी) उत्सर्गरूपी-सामान्यरूप (निवृत्तिः) त्याग (कृतकारितानुमननैः) कृत, कारित, अनुमोदना के भेदों से (वाक्कायमनोभिः) वचन, काय और मन के भेदों से ( नवधा) नौ प्रकार (इष्यते) कहा जाता है (तु)
और (एषा अपवादिकी निवृत्तिः) यह अपवादरूप त्याग (विचित्ररूपा) अनेक प्रकार कहा जाता है।
76. Perfect renunciation (autsargiki nivritti) is of nine kinds (3 x 3): renunciation of it by action of the body, the organ of speech, and the mind; and, in each case, not doing it through oneself, through abetment when done by others, and through
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