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पुरुषार्थसिद्ध्युपाय
दृष्ट्वा परं पुरस्तादशनाय क्षामकुक्षिमायान्तम् । निजमांसदानरभसादालभनीयो न चात्माऽपि ॥
अन्वयार्थ
(च) और ( अशनाय ) भोजन के लिये (पुरस्तात्) सन्मुख ( आयान्तम्) आते हुए (परं) किसी ( क्षामकुक्षिम् ) भूखे जीव को (दृष्ट्वा ) देख कर (निजमांसदानरभसात्) अपना मांस देकर ( आत्मा अपि ) अपनी भी (न आलभनीयः ) हिंसा नहीं करनी चाहिये।
(89)
89. And, on being approached for food by a hungry man, do not fanatically desecrate your own body so as to give him food; thus shun violence towards self.
को नाम विशति मोहं नयभङ्गविशारदानुपास्य गुरून् । विदितजिनमतरहस्यः श्रयन्नहिंसां विशुद्धमतिः ॥
(90)
अन्वयार्थ - ( नयभङ्गविशारदान् ) वस्तु-धर्मों की अपेक्षा को अच्छी तरह जानने वाले ( गुरून्) जैन गुरूओं की ( उपास्य ) उपासना- - पूजा करके (विदितजिनमतरहस्यः ) जिनमत के रहस्य को समझने वाला अतएव (विशुद्धमतिः ) निर्मल बुद्धि को धारण करने वाला (अहिंसां श्रयन् ) अहिंसा तत्त्व पर आरूढ़ रहने वाला ( को नाम) कौन पुरुष ( मोहं विशति ) मोह को प्राप्त होता है? अर्थात् कोई नहीं होता।
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90. After familiarizing oneself with the essence of Jainism through Teachers adept in manifold points of view, and having taken refuge in the principle of ahimsa, which person of clear intellect would yield to delusions (set forth in the preceding _verses)?