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पुरुषार्थसिद्धयुपाय 48. Not exercising detachment from passionate activities that cause himsā, and indulgence in such activities, both are said to constitute himsā. As such, all activities out of passion unavoidably cause severance of vitalities.
सूक्ष्मापि न खलु हिंसा परवस्तुनिबन्धना भवति पुंसः । हिंसायतननिवृत्तिः परिणामविशुद्धये तदपि कार्या ॥
(49)
अन्वयार्थ - (खलु) निश्चय करके (पुंसः) आत्मा के (सूक्ष्म हिंसा अपि) सूक्ष्म हिंसा भी ( परवस्तुनिबन्धना) जिसमें परवस्तु कारण हो ऐसी (न भवति) नहीं होती है, (तदपि) तो भी (परिणामविशुद्धये) परिणामों की विशुद्धि के लिये (हिंसायतननिवृत्तिः) हिंसा के आयतनों, हिंसा के निमित्त कारणों का त्याग (कार्या) करना चाहिये।
49. Verily the soul does not cause even the slightest of injury attributable to any alien object. Still it is desirable for the purity of thought to renounce external objects, incidental to causing injury.
निश्चयमबुद्ध्यमानो यो निश्चयतस्तमेव संश्रयते । नाशयति करणचरणं स बहिः करणालसो बालः ॥
(50)
अन्वयार्थ - ( यः) जो (निश्चयम् अबुद्ध्यमानः) निश्चयनय को नहीं समझता हुआ (निश्चयतः) निश्चयरूप से (तमेव ) उसका ही (संश्रयते) आश्रय करता है, स्वीकार करता है (सः बालः) वह मूर्ख (बहिः करणालसः) बाह्य क्रियारूप चारित्र में आलसी-प्रमादी (सन् ) होता हुआ (करणचरणं) क्रियारूप चारित्र को - व्यवहार चारित्र को (नाशयति) नष्ट कर देता है।
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