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संभव है इस पुस्तक में कुछ लोगों को अपूर्णता दिखलाई दे, किन्तु जितना भर लिखा जा चुका है, उतने से ही हिन्दी द्वारा प्राकृत पढ़ने वाले छात्रों का अतिशय उपकार होगा, इसमें तनिक भी संदेह नहीं। ___ मुझे अपने छात्र-जीवन में हिन्दी में एक प्राकृत व्याकरग की आवश्यकता प्रतीत हुई थी। आज उस इच्छा की पूर्ति से मुझे बड़ी प्रसन्नता है। इस ग्रन्थ के लिखने में लेखक को उत्साहित करने वालों में मेरे अतिरिक्त तिरहुत प्रमण्डल के आयुक्त श्री श्रीधर वासुदेव सोहोनी तथा चम्पारन के कर्मठ-साहित्यिक श्री गणेश चौबे रहे हैं। अतः ये दोनों ही महानुभाव मेरे लिए धन्यवादाह हैं। . ग्रन्थों के न मिलने से जो कठिनाइयाँ आईं, उन्हें बहुत कुछ बिहार रिसर्च सोसाइटी पटना, धर्मसमाज संस्कृत महाविद्यालय मुजफ्फरपुर एवं सोमेश्वरनाथ संस्कृत महाविद्यालय अरेराज के पुस्तकालयों ने दूर किया है, अतः इन संस्थाओं के अध्यक्ष भी धन्यवादाह हैं।
ध्रुवनारायण त्रिपाठी