Book Title: Prakrit Vyakaran
Author(s): Madhusudan Prasad Mishra
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 17
________________ कि प्राकृत के सब शब्द संस्कृत से ही सिद्ध नहीं होते इसलिये उसकी जननी संस्कृत नहीं है। यह कहना ठीक प्रतीत नहीं होता क्योंकि आज भी कुछ शब्द ऐसे देखने में आते हैं जिनका मूल मालूम है, पर उनमें इतना परिवर्तन हो गया है कि उनके मूल शब्द का अनुमान भी नहीं होता। जैसे–'हू कम्स देअर' के स्थान में 'हुकुमदर' या 'हुकुम सदर', 'सिगनल' के स्थान में 'सिकन्दर', 'कृष्णाष्टमी' के स्थान में 'किसुन आँठी' (यह बोली नेपाल की तराई के पास सुनने में आती है) 'इजलास' के स्थान में 'गिलास' और 'सेवासमिति' के स्थान में 'सेवा सपाठी' कहते हुए लोग देखने में आते हैं। इन उदाहरणों से यह अनुमान किया जाता है कि संस्कृत ही प्राकृत की जननी है। कुछ शब्द जो सिद्ध नहीं होते इसका कारण यह है कि उनमें बहुत परिवर्तन हो गया है। जब प्राकृत के प्रायः सभी शब्दों के मूल का पता संस्कृत से लग जाता है तब थोड़े शब्दों के न मिलने के कारण प्राकृत को स्वतन्त्र मानना ठीक नहीं है । विक्रमोर्वशीय में अपभ्रंश के जो पद्य आये हैं, उनके विषय में कुछ लोगों का कथन है कि वास्तव में ये पद्य पहले के नहीं हैं, बाद में जोड़े गये हैं। इसके प्रमाण में वे कहते हैं कि राजा उत्तम पात्रों में गिना जाता है। उत्तम पात्रों की बोली संस्कृत है। इसके अतिरिक्त एक ही पद्य की कई बार आवृत्ति की गई है, जिससे ज्ञात होता है कि ये पीछे से जोड़े गये हैं। परन्तु यह बात नहीं है। यद्यपि राजा उत्तम पात्रों में है और इसकी बोली संस्कृत है तो भी कार्यवश वह अन्य भाषाओं को भी बोल सकता है। आज भी हम सभ्यं-समाज में यदि शिष्ट भाषा का प्रयोग करते हैं तो आवश्यकता पड़ने पर साधारण जनों से ग्राम्य बोलियों से भी बात करना नहीं छोड़ते। पुरूरवा ने अपनी प्रिया के लिए आकुल होकर हाथी, भौंरे, चक्रवाक आदि से कहा था। उन्होंने समझा होगा कि विना महाराष्ट्री तथा अपभ्रंश में बोले वे लोग समझेंगे नहीं, और नहीं समझने के कारण कदाचित् २ प्रा० भू०

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