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( १४ ) एक बात और उल्लेखनीय है। प्रायः देखा जाता है कि एक ही घर में पुरुष संस्कृत, स्त्री शौरसेनी और लड़का मागधी बोलता है। इसका क्या कारण है ? लड़के तो ऐसे होते नहीं कि बचपन में ही कोई स्वतन्त्र भाषा सीख लें। जो भाषा उनकी माता तथा घरवाले बोलते हैं, वही भाषा वे सीखेंगे और बोलेंगे। माता की भाषा से भिन्न भाषा कभी भी उनसे उच्चारित नहीं हो सकती। फिर नाटकों में ऐसी विचित्रता क्यों देखने में आती है ? शकुन्तला में दुष्यन्त आदि संस्कृत में, शकुन्तला तथा उसकी सखियाँ शौरसेनी में बोलती हैं। तब दुष्यन्त का लड़का मागधी कैसे सीख गया ? इसी प्रकार मृच्छकटिक में चारुदत्त का लड़का भी मागधी बोलता है। इस प्रकार नाटकों के सहारे ठीक विचार नहीं किया जा सकता, क्योंकि बोली दूसरी होने पर मी विशेष स्थल के लिए अन्य बोली बोलनी पड़ती है। किन्तु यह भी देखने में आता है कि लड़कों की बोली स्वभावतः ही मागधी होती है। आजकल के लड़के भी प्रायः मागधी ही बोलते हैं। जैसे :-'ए ताता ताल लोपेया द।' इसकी हिन्दी 'ऐ चाचा, चार रुपया दो' होगी। इस प्रकार सब लड़के र के स्थान में ल का प्रयोग करते हैं। अतः इस सम्बन्ध में उक्त सन्देह अनावश्यक है।
पहले प्राकृत की उत्पत्ति के विषय में मैंने अपनी सम्मति न देकर केवल भारतीय तथा पाश्चात्य विद्वानों के मत का ही उल्लेख किया है । अब अपनी सम्मति देना आवश्यक समझ अपना निर्णय दे रहा हूँ। : मेरे विचार से प्राकृत की उत्पत्ति संस्कृत ही से जान पड़ती है क्योंकि भाषा-विज्ञान की ओर दृष्टि डालने से मालूम होता है कि मनुष्य कष्टसाध्य प्रयत्न न कर सुखोच्चार्य शब्द की ओर ही ढुलक जाता है। अतः जो अशिक्षित जन संस्कृत बोलने की चेष्टा तो करते थे, किन्तु बोल नहीं पाते थे उन्हीं के उच्चारण-दोष से बिगड़-बिगड़ कर एक अन्य भाषा बन गई। सारांश यह कि संस्कृत ही का अशुद्ध स्वरूप प्राकृत है। इसके विरोध में कुछ लोगों का यह कहनाः