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अट्टबपणालमो संधि बनाऊँगा।” तब विभीषणने भी कहा, “आदरणीय राम, आप सुभदों में सिंह हैं, आपने बड़े-बड़े युद्धोंका निर्वाह किया है। जिस प्रकार परलोकमें अरहन्त नाथ मेरे स्वामी हैं, उसी तरह इस लोकके मेरे स्वामीश्रेष्ठ आप हैं।" इस प्रकार उनमें बातें हो ही रही थी कि सीता देवीके नयनोंके लिए शुम भामण्डल भी एक हजार अक्षौहिणी सेनाके साथ ऐसे आ गया मानो देवताओंके साथ इन्द्र ही आ गया हो । मणि, मोती और मूंगोंसे युक्त तरह-तरह के विमान उसके साथ थे। राम मन ही मन गद्गद हो उठे । नरपति समूहको उन्होंने विदा दी। और पुष्पषतीके पुत्र भामण्डलको अपनी हर्ष-भरी भुजाएँ फैलाकर गरेसमा लिगा । १...।।
अट्ठावनवीं सन्धि भीषण भामण्डल और विभीषणके मिलनके अनन्तर, रामने कुनीति और कुबुद्धिसे रहित अंगद को, लक्ष्मीके निवास, राषणके पास भेजा।
[१] रामने जाम्बवन्तसे पूछा-'बताओ इनमें से कौन बुद्धिमान है। क्या गवय और गवान, या सुसेन और तार ? क्या युद्ध में दुनियार हनूमान ? क्या नल और नील ? क्या इन्द्र और कुन्द ? क्या अंगद पृथुमती या महेन्द्र ? क्या कुमुद विराधित और रत्नकेशी ? क्या भामण्डल और चन्द्रराशि " रामने जब इस प्रकार पूछा तो जाम्बवन्तने प्रणामपूर्वक निवेदन किया,--"आज्ञापालनमें सुसेन निपुण है और पिनयमें कुन्द । पंचांगमन्त्रमें मतिसमुन्द्र विशेष योग्यता रखता है।
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