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पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तुत्व चन्द्रकवि ने अमरचंद के पुत्र का नाम स्पष्ट रूप से जोधराज नहीं लिखा है, तथापि सिद्धान्तशास्त्रों के विशेष विद्वान् जोधराज गोदीका ने उनके द्वारा लिखित सामनौपदी और पचनसार भाषा दोनों में ही स्वयं को सांगानेर निवासी अमरचंदजी का पुत्र बताया है। उक्त ग्रंथों का निर्माण-काल भी जो श्रमश: वि० संवत् १७२४३ एवं १७२६४ है, भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति के समय से मिलता है । 'धर्म सरोवर' ग्रंथ में भी ऐसे ही उल्लेख हैं ।
इस तरह का कठोर व्यवहार भट्टारकों के अनुयायी धावक लोग ही नहीं करते थे किन्तु भट्टारक लोग स्वयं भी उसमें प्रत्यक्ष वे अप्रत्यक्ष रूप से सक्रिय रहते थे। वे ऐसा करने के लिये थावकों को मात्र उकसाते ही नहीं थे वरन् स्पष्ट आदेश तक देते थे। उनके द्वारा लिखित टीका ग्रन्थों में भी इस प्रकार के उल्लेख पाए जाते हैं । सोलहवीं शती के भट्टारक श्रुतसागर सूरि ने फंदकुंदाचार्य के पवित्रतम ग्रंथ 'षट्पाहुड़' (षट्प्राभृत) की टीका करते हुए इस प्रकार की अनर्गल बातें लिखी हैं :
__ "जब ये जिनसूत्र का उल्लंघन कर तब आस्तिकों को चाहिए कि युक्तियुक्त वचनों से इनका निषेध करें, फिर भी यदि ये कदाग्रह
-... ...-. ...-- - ' अमरपूत जिनवर-भगत, बोधराज ऋवि नाम ।
त्रासी सांगानेर को, कारी बाथा सुखधाम ।। २ ता राज सुचन सौं कियो ग्रंथ यह जोध ।
सांगानेर सुधान में हिरदै धापि सुबोध ।। 3 संवत् सत्तरहसौ चौबीस, फागुन बदी तेरम सुभ दीस ।
सुकरवार को पूरन भई, इहै कथा समकित गुग्ण टही ।। ४ सत्रह से छब्बीम सुभ, विक्रम साक प्रमान । __ अरू भादों सुदी पंचमी, पूरन ग्रंथ बखान 1] ५ जोध कवीवर होय बासी मांगानेर को.। अमरपूत जगसोय, वरिगक जात जिनवर भगत ।।