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भाषा
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आई हैं। ये एक तरह से तदभव रूपों से बनी हुई हैं । जैसे – 'उपजे है', यह रूप 'उत्पद्यते' से प्राया है। हम इन्हें यहाँ देशी मान कर ही चल रहे हैं। कुछ शुद्ध देशी क्रियाएँ भी पाई जाती हैं। जैसे - निगलिए, खोसे,
कुमावे, आदि। (ग) तीसरे वर्ग में वे प्रेरणार्थक क्रियाएँ पाती हैं जो उक्त
दोनों प्रकार के क्रियापदों में प्रेरणार्थक 'या' जोड़ कर ही बना ली गई हैं । जैसे- लिख से लिखाना, पढ़ से पढ़ाना, परिणम से परिणमाना, कर से कराना, आदि । कुछ क्रियाएँ शुद्ध प्रेरणार्थक भी हैं। जैसे - बताना आदि ।
इनके अतिरिक्त एक-दो विदेशी क्रियाएँ भी प्राप्त हुई हैं। जैसे - बक्सी (भेट दी)। कई स्थानों पर एक 'घातु' के एक ही अर्थ में अनेक प्रकार के रूप भी बनाये गए हैं। जैसे - 'कर' धातु से करिए है, कीजिए है, कर है, करी हौं, आदि वर्तमान काल के रूप मिलते हैं । इसी प्रकार देशी क्रिया 'बनाना' के वर्तमान काल में ही
बनाइये है, बनावें है, बनाऊँ हूँ, रूप प्राप्त होते हैं । संस्कृत को साध्यमान (विकरण) क्रियाओं से बनने वाली कुछ क्रियाएँ सोदाहरण नीचे दी जा रही हैं :(१) कर १. करिहीं करि मंगल करिहों महाग्रन्थ करन
को काज। २. करिए है तहाँ मंगल करिए है। ३. कीजिए है चितवन कीजिए है। ४, करेंगे सज्जन हास्य नाहीं करेंगे। ५. करै है ताको भी मंद कर है। ६. करौ हौं । टीका करने का उद्यम करो हों। ७, कीन्हों हम कछु कीन्हों नाहिं। ५. कीनी ऐसें कोनो बहुरि विचारि।
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