________________
उपसंहार : उपसम्धिा और मूल्यांकन
३२१ उनका संकलन विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी में नाथ सिद्ध पृथ्वीनाथ के समय किया गया था।
मद्य का एक और नमूना 'शृगार रस मंडन' में दिखाई देता है, . जिसकी भाषा का नमूना निम्नलिखित है :
"प्रथम की सखी कहतु हैं । जो गोपीजन के चरण विष सेवक का दासी करि जो इनको प्रेमामृत में डुबि के इनके मंद हास्य ने जीते हैं । अमृत समूह ता करि निकंज विष शृगाररस श्रेष्ठ रसना कीनो सो पूर्ण होत भई'।"
प्राचार्य शुक्ल और मिश्रबन्धु आदि ने 'शृगार रस मंडन' का लेखक श्री वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथजी को माना है, किन्तु डॉ० प्रेमप्रकाश गौतम ने सिद्ध किया है कि यह पुस्तक विट्ठलनाथजी ने संस्कृत में लिखी थी । इसका अजभाषा में रूपान्तर किसी अन्य परवर्ती विद्वान् (संभवतः १८वीं शती) का है |
इसके बाद वल्लभ सम्प्रदाय के 'चौरासी वैष्णवों की वार्ता तथा 'दो सौ बावन वैष्णवों की वार्ता' की गद्य रचनाएँ हैं। इनके लेखक के सम्बन्ध में मतभेद है । कुछ लोग इन्हें विट्ठलनाथ के पुत्र गोकुलनाथ की लिखी मानते हैं, जबकि कुछ लोग उनके किसी शिष्य के द्वारा। इनका समय सत्रहवीं शती का उत्तरार्द्ध है । इनमें कथाएँ बोलचाल की भाषा में लिखी गई हैं और अरबी, फारसी के शब्दों का निःसंकोच प्रयोग है । प्राचार्य शुक्ल का कहना है कि साहित्यिक निपुणता या चमत्कार की दृष्टि से ये कथाएँ नहीं लिखी गई 1 उदाहरण के लिए यह उद्धृत अंश पर्याप्त होगा :
"सो श्री नंदगाम में रहतो सो खंडन ब्राह्मण शास्त्र पन्यो हतो। सो जितने पृथ्वी पर मत हैं सबको खंडन करतो; ऐसो वाको नेम हतो । याही ते सब लोगन ने वाको नाम खंडन पारयो हतो। सो एक दिन श्री महाप्रभुजी के सेवक बैष्णवन की मंडली में आयो ।
'हि. सा० इति०, ४०४ २ हि ग० वि०, ६०