Book Title: Pandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 362
________________ जीवन पत्रिका वहां रहै, तहां हम गए अर टोडरमल्लजी सं मिले, नाना प्रकार के प्रश्न काए, ताका उत्तर एक गोमट्टसार नामा ग्रंथ की साखि सूं देते मए। ता ग्रंथ की महिमा हम पूर्व सुरणी थी, तातूं विशेष देखी। पर टोडरमल्लजी का ज्ञान की महिमा अद्भुत देखो। पीछे उन हम कही - तुम्हारै या ग्रंथ का परचै निर्मल भया है। तुम करि याकी भाषा टीका होय तौ घणां जीवां का कल्याण होइ अर जिन धर्म का उद्योत होइ । अबही' काल के दोष करि जीवां की बुद्धि तुछ रही है, अागे यातें भी अल्प रहेगी, तातै पैसा महान् ग्रंथ पराकृत ताकी मूल गाथा पंद्रह से १५०० ताकी टीका संस्कृत प्रकारह हजार १५००० ता विर्ष अलौकिक चरचा का समूह संदृष्टि वा गरिरात शास्त्र की आम्नाय संयुक्त लिस्या है, ताका भात भासना महा कठिन है । अर याके ज्ञान की प्रवत्ति पूर्वं दीर्घ काल पर्यंत तें लगाय अब ताई नाहीं तो प्रागै भी याकी प्रवत्ति कसे रहेगी। तातें तुम या ग्रंथ की टीका करने का उपाय शीघ्र करो, प्रायु का भरोसा है नांहीं। पीछे ऐसे हमारे प्रेरकपरणों का निमत्त करि इनकै टीका करने का अनुराग भयो । पूर्व भी याकी टीका करने का इनका मनोर्थ था ही, पीछे हमारे कहने करि विशेष मनोर्थ भया । तन्न शुभ दिन महल विष टीका करने का प्रारंभ सिंघांणां नग्न विर्ष भया । सो वे तो टीका बणावते गए, हम बांचते गए। बरस तीन मैं गोमट्टसार ग्रंथ की अठतीस हजार ३५०००, लब्धिसार क्षपणासार ग्रंथ की तेरह हजार १३०००, त्रिलोकसार ग्रंथ की चौदह हजार १४०००, सन्न मिलि च्यारि ग्रंथों की पेंसठि हजार टीका भई । पीछे सबाई जैपुर ग्राए। तहां गोमटसारादि च्यारौं ग्रंथों के सोधि याकी बहोत प्रति उतराई । जहां सैली छी तहां सुधाइ मुधाइ पधगई। असे या ग्रंथां का अवतार भया । अबार के अनिष्ट काल विर्ष टोडरमल्लजी के ज्ञान का क्षयोपसम विशेष भया। ए गोमटसार ग्रंथ का बचना पांच से बरस पहली था। तापीछ बुधि की मंवता करि माव सहित बचना रहि गया। बहरि प्रब फेरि याका उद्योत मया । १ वर्तमान में ही २ प्राकृत ।

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