Book Title: Pandita Todarmal Vyaktitva aur Krititva
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 363
________________ पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व बहुरि वर्तमान काल विषे इहां धर्म का निमित्त है तिसा अन्यत्र नांहीं । वर्तमान काल विषै जिन धर्म की प्रवृत्ति पाईए है ताका विशेष आगे इंद्रध्वज पूजा का विधान लिखेंगे ता विधै जानना । ३३६ बहुरि काल दोष करि बीचि मैं एक उपद्रव भया सो कहिए है । संवत् १८१७ कै सालि असाढ़ के महने एक स्यामराम ब्राह्मण वाके मत का पक्षी पापमुत्ति उत्पन्न भया । राजा माघवस्येह का गुर ठाहरचा, ता करि राजा नैं बसि कीया। पीछे जिनधर्म सूं द्रोह करि या न के वा सर्व ढूंढाड़ देश का जिन मंदिर तिनका विघ्न कीया, सर्व कूं बेस करने का उपाय कीया, ता करि लाखां जीवां में महा घोरान घोर दुख हूवा पर महा पाप का बंध भया । सो एह उपद्रव बरस ड्योढ पर्यंत रधा । पीछे फेरि जिनधर्म का अतिशय करि वा पापिष्ट का मान भंग वा जिन वर्ष का पर्व जिन मंदिरां का फेरि निर्माण हूवा। श्रगां बीचि दुगुरणां तिगुणांचीगुरगां जिनधर्म का प्रभाव प्रबर्त्या । तासमै बीस तीस जिन मंदिर या नम्र विषै अपूर्व बरणें । तिन विषै दोय जिन मंदिर तेरापंथ्यां की शैली विषै श्रद्भुत सोभा ने लीयां, बड़ा विस्तार नै धरयां बर्गों । तहां निरंतर हजारों पुरष स्त्री देवलोक की सी नाई चैत्याले प्राय महा पुन्य उपारजै, दीर्घ काल का संच्या पापताका क्षय करें । सौ पचास भाई पूजा करने वारे पाईए, सौ पचास भाषा शास्त्र बांचने बारे पाईए, दश बीश संस्कृत शास्त्र बांचनें वारे पाईए, सौ पचास जने चरचा करने बारे पाईए और नित्यान' का सभा के सास्त्र का व्याख्यान विषै पांच से सात से पुरष तीन से च्यारि से स्त्रीजन सब मिलि हजार बारा से पुरष स्त्री शास्त्र का श्रवण करै, बीस तीस बाय शास्त्राभ्यास करें, देश देश का प्रश्न इहां श्रावै तिनका समाधान होय उहां पहुंचे, इत्यादि अद्भुत महिमां चतुर्थकालवत या नम्र विषे जिनधर्म की प्रवृत्ति पाइए है। t " नित्य प्रति की f

Loading...

Page Navigation
1 ... 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395