________________
इन्द्रध्वज विधान महोत्सव पत्रिका
३३६ और पोस बदि १ सू लगाय पाचास रुपयां को रोजीनों कारीगरां को लाग है । सो माह सुदि १० ताई लागेगा। पाछै सौ रुपयां को रोजीनों फागण नदि '४ ताई लागेगा। और तेरा द्वीप, तेरा समुद्र के बीचि बीचि छब्बीस कोट बरणंगा । और दरबार की नाना तरह की जलूसि आई है अथवा प्रागरं इन्द्रध्वज पूजा पूर्व हुई थी ताको सारो मसालो वा जलुसि इहां पाया है।
और इहां सर्व सामग्री का निमत्त अन्यत्र जायगा ते प्रचुर पाईए है तातै मनोर्थ अनुसारि कार्य सिद्धि होहिंगे ।
एह सारी रचना द्वीप नदी कुलाचल पर्वत आदि की घन रूप जाननी। चांवल रोली का मंडल की नाईं प्रतर रूप नहीं जाननी । ए रचना त्रिलोकसार ग्रंथ के अनुसारि बणी है । और पूजा का विधान इंद्रध्वज पूजा का पाठ संस्कृत श्लोक हजार तीन ३००० ताकै अनुसारि होयगा । च्यारां तरफ नै च्यारि बड़ी गंधकुटि ता विर्ष बड़े बिंब बिराजेंगे। तिनका पूजन च्यारां तरफा युगपत् प्रभति मुखिया साधर्मी करेंगे।
पीछे च्यारो तरफा जूदा-जूदा महतद्धि का धारक मुखिया साधर्मी सास्त्र का व्याख्यान करेंगे। देस-देस के जात्री आए वा इहां के सर्व मिलि सास्त्र का उपदेश सुणेंगे। पीछे आहार लेना आदि शरीर का साधन करि दोपहर दिन चढ़े से लगाय दोय घडी दिन रहें पर्यंत सुदर्शन मेरू का चैत्यालय सूं लगाय सर्व चैत्यालयां कां पूजन इन्द्रध्वज पूजा अनुसारि होयगा। पीछे च्यौतरा की तीन प्रदक्षिणा देय च्यारां तरफा प्रारती होयगी। पीछे सर्वरात्रि विष च्यारां तरफ जागरण होयगा।
और सर्वत्र रूपा सोना के जरी का वा तबक' का वा चित्राम का या भोडल के काम का समवसरणवत् जगमगाट ने लियां सोभा बनेंगी और लाखों रूपा सोना के दीप वा फूल पूजन के ताई बन है। और एक कल का रथ बण्या है सो बिना बलधां बिना प्रादम्यां कल के
' सोने-चांदी के वरक