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भाषा
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(५०) प्रगट प्रगटै है (५१) निर्जर निर्जर है (५२) निकस निकस है (५३) उथाप उथाप है
प्रकाश प्रगट है। एक समयप्रबद्ध मात्र निर्जरे है । छस्से आठ जीव निकस है। पूजा प्रभावनादि कार्य को उथाप
(५४) अनुभव अनुभव है परमानन्दको अनुभव हैं। (५५) प्रादर प्रादरं है बारह प्रकार तपनि की प्रादरें हैं। {५६) विनश विनशै जा करि सुख उपजे व दुःख
बिनशे । (५७) अनुसर अनुसरे है सभा मांहि ऐसी जिनमहिमा
पानसरे है। (५८) स्वाद स्वार्दू सर्व कौं स्वायूँ ।
पालोच्य साहित्य में देशी क्रियाओं के निम्नलिखित रूप पाए जाते हैं :(१) चाह चाहै है । रागद्वेष भाव कों हेय जान करि
दूर किया चाहै हैं । (२) उपज १. उपज है
२. उपज्यो उपज्यो मानुष नाम कहाय । ( ३ ) देख १. देखिए है ताकै भी दुख देखिए है।
२. देखू सर्व कौं देखू । (४) जान १. जान है प्रत्यक्ष जान है।
२. जानें सर्व कौं आने । ३. जानने ते सर्व मुनि साधु संज्ञा के धारक
जानने । ( ५ ) पकर पकरें कौऊ शरीर को पकर तो आत्मा
भी पक रचा जाय।