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पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व उनकी शैली की विशेषता यह है कि प्रश्न भी उनके होते हैं और उत्तर भी उनके । पूर्व प्रश्न के समाधान में अगला प्रश्न उभर कर आ जाता है। इस प्रकार विषय का विवेचन विचार के अंतिम बिन्दु तक पहुंचने पर ही वह प्रश्न समाप्त होता है । उनकी शैली की एक मौलिकता यह है कि वे प्रत्यक्ष उपदेश न दे कर अपने पाठक के सामने वस्तुस्थिति का चित्रण और उसका विश्लेषण इस तरह करते हैं कि उसे अभीष्ट निष्कर्ष पर पहुँचना ही पड़ता है । एक चिकित्सक रोग के उपचार में जिस प्रक्रिया को अपनाता है, पंडितजी को मनाली में यह प्रक्रिया देखी जा सकती है । उनको शैली तर्क-वितर्कमूलक होते हुए भी अनुभूतिमूलक है। कभी-कभी वह मनोवैज्ञानिक तर्कों से भी काम लेते हैं । उनके तर्क में कठमुल्लापन नहीं है । उनकी गद्य शैली में उनका अगाध पाण्डित्य और आस्था सर्वत्र प्रतिबिम्बित है । उनकी प्रश्नोत्तर शैली आत्मीय है क्योंकि उसमें प्रश्नकर्ता और समाधानकर्ता एक ही है। उसमें शास्त्रीय और लौकिक जीवन से सम्बन्धित दोनों प्रकार की समस्याओं का विवेचन है। जीवन के और शास्त्र के प्रत्येक क्षेत्र से उन्होंने अपने उदाहरण चुने हैं। कहीं-कहीं कथा-कहानी भी उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत की गई हैं । लोकोक्तियों का भी उसमें प्रयोग है।
हिन्दी के अन्तर्गत सामान्यतः पश्चिमी हिन्दी, पूर्वी हिन्दी, राजस्थानी, बिहारी तथा पहाड़ी भाषाओं और इनकी बोलियों की गणना की जाती है । इस प्रकार इनमें से किसी भी बोली या भाषा में लिखा गया गद्य हिन्दी गद्य कहलाएगा । अद्यावधि उपलब्ध सामग्री के आधार पर राजस्थानी, मैथिली, पुरानी अवधी,
' (क) हिन्दी भाषा का इतिहास : डॉ. धीरेन्द्र बर्मा
(ख) हिन्दी भाषा का उद्गम और विकास : डॉ. उदयनारायण तिवारी २ राजस्थानी भाषा और साहित्य : डॉ. हीरालाल माहेश्वरी, अध्याय १४ तथा
उसके अंतर्गत दिये गए विभिन्न संदर्भ 3 (क) वर्ण रत्नाकर
(ख) हिस्ट्री ऑव मैथिली लिट्रेचर, भाग १, डॉ. जयकान्त मिश्र ४ उक्तिव्यक्ति प्रकरण