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ॐ गोल
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पञ्च साहित्य
विभिन्न मंगलाचरणों में भी कवि ने देव-शास्त्र-गुरु के प्रति भक्तिभाव प्रकट किया है। उनकी भक्ति निष्काम है। उनका कहना है कि बील राग भगवान का भक्त भिखारी नहीं होता। उनके अनुसार मंगलाचरण में किये गए गुण स्तवन का हेतु यह है :- "सहाय कराबन की, दुःख द्यावने की जो इच्छा है, सो कपायमय है, तत्काल वि4 वा आगामी काल विर्षे दुःख दायक है । तातं ऐसी इच्छा कू छोरि हम तो एक वीतराग विशेष ज्ञान होने के अर्थी होइ अरहतादिक कौं नमस्कारादिरूप मंगल किया है।"
उनकी यदि कोई मांग है तो वह है एक मात्र स्वयं भगवान बनने की । वे सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका की प्रशस्ति में अपनी भक्ति का कारण इस प्रकार व्यक्त करते हैं :
अरहंत सिद्ध मूरि उपाध्याय साधु सर्व गर्थ के प्रवाशी मालीक उपकारी है । तिनको स्वरूप जानि रागते भई है भक्ति, ताले काय कौं नमाय स्तुति उचारी है ।। धन्य धन्य तुम ही तें सब काज भयो, कर जोरि बारंबार बंदना हमारी है । मंगल कल्याण सूख ऐसो चाहत है,
होहु मेरी ऐसी दशा जैसी तुम धारी है ।। वे अच्छी तरह जानते हैं कि भगवान् किमी का अच्छा बुरा नहीं करता, करे तो वह भगवान् नहीं । सभी मंसारी जीवों के सुख-दुःख, जीवन-मरण उनके अच्छे-बुरे कार्यों (शुभाशुभ कर्मों) का फल है । प्रतः उनकी भक्ति सहज श्रद्धा का परिणाम है, किसी प्रकार की आमा-आकांक्षा का फल नहीं ।
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१ मो० मा० प्र०, १४ २ स० चा प्र०, सन्द ६३ 3 मो० मा० प्र०.३३१-२२