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पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कत्य विर्षे - परिणामन की मग्नता विर्षे विशेष है ।
और विखें - अर दोनों ही का परिणाम नाम बिखें हैं। धर्म - तब साँचा धर्म हो है । और धर्म - बहुरि धर्म के अनेक अंग हैं । कर्म - जो कर्म पाप कर्ती होय उद्यम करि जीव के और स्वभाव को घात.......| कर्म - कर्म निमित्त ते निपजे जीव नाना प्रकार दुःख
तिन करि पीड़ित हो रहे हैं। (8) च्यारि - तहाँ च्यारि घातिया कर्मनि के निमित्त ते तो
जीब के स्वभाव का घात ही हो है । च्यार - प्रथमनोग. कारणानुगोग, चरणानुयोग,
द्रव्यानुयोग ए च्यार अनुयोग हैं । और चारि - जो ये चारि लक्षण कहे तिनि विर्षे......। काज - करि मंगल करि हौं महाग्रंथ करन को काज । कारज- तब यह उत्तम कारज थयो ।
और
कार्य -- जैसे कोई गुमास्ता साहू के कार्य विर्षे प्रवर्ते है । (११) प्रादि - आहार-विहारादि क्रियानि वियें सावधान हो हैं ।
और आदिक -- वचनाविक लिखनाविक क्रिया,
वर्णादिक अरु इन्द्रिय हिया । (१२) गुमावै - जैसे तैसे काल गुमाये ।
और गमावै - निरुद्यमी होय प्रमादी यूं ही काल गमाव है।