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भाषा
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शम्व-विशेष के कई प्रयोग (लिपि की दृष्टि से)
विचाराधीन साहित्य की भाषा में एक ही अर्थ में कुछ शब्दों के दो या दो से अधिक रूप मिलते हैं। इनमें प्रायः ध्वनि में परिवर्तन कर दिया जाता है । नमूने के रूप में कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं :-- (१) अनुसार - १. इनि का प्राकार लिखना तो अपनी इच्छा के
__ अनुसार अनेक प्रकार है। और २. तिन विर्षे हमारे बुद्धि अनुसार अभ्यास वत है 1 अनुसारि - १. ताके अनुसारि अन्य-अन्य प्राचार्यादिक
नाना प्रकार ग्रंथादिक की रचना करें हैं । २. इच्छा कषाय भावनि के अनुसारि कार्य
करने की हो है। (२) सिद्धि - दुःख विनशै ऐसे प्रयोजन की सिद्धि इनि करि
और हो है कि नाही ?
सिद्धी - इन करि ऐसे प्रयोजन की तो सिद्धी हो है। (३) तिनका - पीछे तिनका भी प्रभाव भया ।
और तिनिका- भ्रम करि तिनिका कह्या मार्गविर्षे प्रवर्ते हैं। (४) किछू - बिना कषाय बाह्य सामग्री किछू सुख-दुःख की
दाता नाहीं। कछु - मिले कछु कहिए भी सो मिलना कर्माधीन है ।
और
कुछ - तिसके उत्तर अपनी बुद्धि अनुसार कुछ लिखिए हैं । वार्ता - धन्य हैं जे स्वात्मानुभव की वार्ता भी करें।
और बात - मात्मा की बात भी सुनी है, सो निश्चय करि भव्य है।