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पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्त्तृस्व
इसके अपवाद भी मिलते हैं । जैसे :
(१) तुमने प्रत्यक्ष-परोक्ष सम्बन्धी प्रश्न लिखे । (२) तिनिने तिस मंगल करनेवाले की सहायता न करी ।
(३) तातें तुमने जो लिख्या था .......।
(४) हमने स्वप्न विषे वा ध्यान बिये फलाने पुरुष को प्रत्यक्ष देखा | (५) स्वानुभव और प्रत्यक्षादिक सम्बन्धी प्रश्न तुमने लिखे थे । फर्म
कर्म कारक में 'को, कों, कों, कूँ, श्रों' के प्रयोग मिलते हैं । कहीं-कहीं कर्म कारक में भी विभक्ति का लोप देखा जाता है ।
को - ( १ ) तत्त्वज्ञान को पोषते प्रधनिकों धरेंगे।
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(२) मैं सर्व को स्पर्श, सर्व को सूंधू, सर्व को देखूं, सर्व को सुनूँ, सर्व को जानूँ ।
(३) आपको आप अनुभव है ।
(४) ताको भी मंद करें है ।
को - ( १ ) अनंत वीर्य करि ऐसी सामर्थ्य कों धारे हैं । (२) जुदाई कों नाहि विचारे ।
(३) जो उनकों मानें पूजे तिस सेती कौतुहल किया करें।
को - तिनिक तिन पदनि का अर्थज्ञान होने के अर्थ धर्मानुराग वश तें ........ |
कूं - ( १ ) घन कूँ चुराय अपना माने । (२) तातें ऐसी इच्छा कूं छोरि (३) मोकूं बताय देना । (४) सर्व कूं स्वार्दं ।
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त्रों-कहीं अनिष्टपनों मानि दिलगीर हो है ।
विभक्ति का लोप - काष्ठ पाषाण की मूर्ति देखि, तहाँ विकाररूप होय अनुराग करें ।.