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पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कतव पिता पुत्री वा मनुष्य तिर्यंचणी इत्यादित रमने लगि जाय हैं । ऐसी काम की पीड़ा महा दुःखरूप है।"
संक्षेप में पंडित टोडरमल के विचार परम्परागत विचार ही हैं, किन्तु उनमें उनका मौलिक चिन्तन सर्वत्र प्रतिफलित हुया है। किसी भी वस्तु को वे आगम, अनुभव और तर्क की कसौटी पर कस कर ही स्वीकार करते हैं। मात्र परम्परागत होने से वे उसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं । यद्यपि पार्षवाक्यों को उन्होंने सर्वत्र आगे रखा तथापि तकों द्वारा उन्हें तरासा भी, जिससे उनमें एक नवीनता व चमक आ गई है। उन्होंने अपने प्रतिपाद्य को अनुभव करने के बाद पाठकों के सामने प्रस्तुत किया है, अत: उनके प्रतिपादन में वजन है।
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१ मो० मा०प्र०,७९