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पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व (७) कोई रोगी यदि निर्गुण (७) उसी प्रकार कोई व्यक्ति औषधि का निषेध सुन कर पुण्यरूप धर्म का निषेध सुन कर औषधि सेवन छोड़ कुपथ्य सेवन । धर्मसाधन छोड़ दे और विषयों करेगा तो मृत्यू को प्राप्त होगा, में लग जाय तो वह नरकादि में उसमें वैद्य का तो दोष नहीं है। दुःखी होगा, इसमें उपदेशक का
तो दोष नहीं है। (८) यदि गधा मिश्री खाने से (८) उसी प्रकार विपरीत-बुद्धि मर जावे तो मनुष्य तो मिश्री अध्यात्मग्रंथ सुन कर स्वच्छन्द खाना न छोड़े।
हो जावे तो विवेको अध्यात्मग्रंथ
का अभ्यास क्यों छोड़ेर ? (६) अति शीतांग रोग वाले (६) उसी प्रकार किसी एक को अति उष्ण रसादिक औषधि ओर अधिक झुके हुए व्यक्ति के दी जाती है । यदि दाह वाले को संतुलन को ठीक करने के लिए या साधारण शीत वाले को वह उसके निषेध का उपदेश दिया उष्ण औषधि दे दी जावे तो जाता है । यदि सामान्य जन अनर्थ ही होगा।
उसे ग्रहण कर उक्त कार्य छोड़ दें तो बुरा ही होगा। जैसे दिनरात शास्त्राभ्यास में लगे हुए व्यक्ति को कहा जावे कि प्रात्मानुभव के बिना कोरा शास्त्राभ्यास निरर्थक है। इसे सुन कर कम शास्त्राभ्यास करने वाले या शास्त्राभ्यास नहीं करने वाले शास्त्राभ्यास से विमुख हो जावें तो बुरा ही होगा।
' मो० मा०प्र०, ३१३-१४ ५ वही, ४२६ ३ वही, ४४२