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पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और काल (६) निषेधवाचक :नाहीं - (१) परद्रव्य विर्षे ग्रहबुद्धि नाहीं है ।
(२) कौऊ द्रव्य काहू का मित्र शत्रु है नाहीं । नहीं - पुद्गल परमाणु तो जड़ है. उनके किछू ज्ञान नहीं । नाहि - वर्धमान केवली के देहरूप पुद्गल ते,
जीव नाहि प्रेरे तौऊ उपकार करें है । नहि -- संस्कृत सद्दष्टिनि कौं ज्ञान,
नहि जिनके ते चाल समान । न - (१) पर भावनि विर्षे ममत्व न करे हैं ।
(२) बिगार न होय, तो हम काहै कौं निषेध करें। मति – (१) जिनकों बंध न करना होय ते कषाय
मति करो। (२) कार्यकारी नाहीं तो मति होहु, किडू तिनके
मानने से बिगार भी तो होता नाहीं । (७) विस्मयवाचक :
अहो - अहो ! देव गुरु धर्म तो सर्वोत्कृष्ट पदार्थ हैं,
इनके प्राधारि धर्म है। हाय हाय -- सो हाय ! हाय !! यहु जगत राजा करि रहित है,
__कोई न्याय पूछनेवाला माहीं। (८) सामान्य अव्यय :
अथ - प्रथ मोक्षमार्ग प्रकाशक नाम शास्त्र का उदय हो है। पर - (१) पर ताही के अनुसार ग्रन्थ बनावें हैं ।
(२) पर श्रद्धान ही सर्व धर्म का मूल है । प्रान - ताही का निमित्त पाय पान स्कंध पुद्गल के ।