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पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व औरों को हम नहीं माना जा साध दिखाई न देखें तो पोरों सकता । जब तक हंस के गुरग को तो साधु नहीं माना जा न मिलें तब तक किसी पक्षी सकता । साधु के लक्षण मिलने को हंस नहीं माना जा सकता। पर ही किसी को साधु माना
जा सकता है, अन्यथा नहीं। (४) बीज बोए बिना खेत को (४) उसी प्रकार सच्चा तत्त्वकितना ही संभालो, अनाज पंदा ज्ञान हार बिना कितना ही नहीं होगा। .
व्रतादि करो, सम्यक्त्व नहीं
होगा। संगीत सम्बन्धी उदाहरण उदाहरण
सिद्धान्त (१) जैसे कोई व्यक्ति संगीत (१) उसी प्रकार कोई जीव सम्बन्धी शास्त्रों के आधार से प्रास्त्रों का अध्ययन कर जीवादि इसके स्वर, ग्राम, मूर्छना ब तत्त्वों के नामादि सीख ले किन्तु रागों के रूप, ताल, तान व उनके गही रूप को पहिचाने उनके भेदों को सीख लेता है नहीं । अतः बिना पहिचान परन्तु उनके स्वरूप को नहीं किसी तत्व को कोई तत्त्व मान पहिचानता। पहिचान बिना ले अथवा सही भी मान ले किसी स्वर को कुछ का कुछ मान पर बिना निर्णय के तो वह लेता है या राही भी मान लेता है सम्यक्त्व को प्राप्त नहीं कर पर बिना निर्णय के तो वह सकता । चतुर गायक नहीं बन सकता।
पाठक की सचि-अरुचि एवं कठिनता-सरलता का ध्यान उन्होंने सर्वत्र रखा है । बे उतना ही लिखना चाहते हैं जितना पाठक ग्रहण कर सके और उसी प्रकार से लिखना चाहते हैं जिस प्रकार पाठक
। मो० मा० प्र०, २३५, २७२ २ यही, ३४४ । वहीं, ३२९