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पंबित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्रास्त्र स्वानुभूति पर उन्होंने सर्वत्र जोर दिया है। यह बात उनके प्रतीकों में भी मिलती है . महां परमरगत रूप से अरहन्त, सिद्ध भगवान के लिए "शिव रमनी रमन' लिखा जाता रहा है, वहाँ वे 'स्वानुभूति रमनी रमन' लिखते हैं।
__ इस प्रकार उनका पद्य साहित्य यद्यपि सीमित है, तथापि जो भी है वह उनके कवि हृदय को व्यक्त करता है।
उनके समग्र साहित्य का अनुशीलन करने के उपरान्त हम देखते हैं कि उनका सम्पूर्ण साहित्य करीब एक लाख श्लोक प्रमाण विशाल परिमारण में है तथा वह मौलिक और टोकाएँ, गद्य और पद्य सभी रूपों में उपलब्ध है । सभी साहित्य देशभाषा में है, मात्र कुछ संस्कृत छंदों को छोड़ कर । उनकी रचनाएँ वर्णनात्मक, व्याख्यात्मक, विवेचनात्मक, यंत्र-रचनात्मक एवं पत्रशैली में हैं। विविध रूपों में प्राप्त होने पर भी उनका प्रतिपाद्य आध्यात्मिक तत्त्वविवेचन ही है । उनके मौलिक ग्रन्थ तो उनके स्वतन्त्र तत्त्वचितन को प्रतिफलित करते ही हैं, उनके टीकाग्रंथ भी मात्र अनुवाद नहीं हैं, उनका चिंतक वहाँ भी जागत है और उन्होंने अपने इस स्वातन्त्र्य का स्पष्ट उल्लेख भी किया है।
प्रतिभात्रों का लीक पर चलना कठिन होता है, पर ऐसी प्रतिभाएं बहुत कम होती हैं जो लीक छोड़ कर चलें और भटक न जायें। पंडित टोडरमल भी उन्हीं में से एक हैं जो लीक छोड़ कर चले, पर भटके नहीं।
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