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रखनानों का परिचयात्मक अनुशीलन • वा संकलनादि की संदृष्टि का वर्णन गोम्मटसार शास्त्र की भाषाटीका' विर्षे संदृष्टि अधिकार कीया है तहां लिखी है, सो तहां तें जाननी ।'
सम्यग्ज्ञानचंद्रिका टीका विक्रम संवत् १८१८ में समाप्त हुई पर उसका निर्माण कार्ग तो वि० सं० १८१५ में हो चुका था। शेष तीन वर्ष तक तो इसका संशोधनादि कार्य चलता रहा । इसी बीच त्रिलोकसार भाषाटीका भी बन चुकी थी। दि० जैन वड़ा मंदिर तेरापंथियान, जयपुर में प्राप्त प्रासोज कृष्णा ५ वि० सं० १८१५ में लिखित भूधरदास के 'चर्चा समाधान' नामक हस्तलिखित ग्रंथ पर प्राप्त उल्लेख में त्रिलोकासार भाषाटीका लिखे जाने की भी चर्चा है । सम्यग्ज्ञानचंद्रिका को पीठिका में त्रिलोकसार भाषाटोका की पीठिका लिखी जा चुकने का भी उल्लेख है। वि० सं० १८२१ के पूर्व लिखी जाने की बात तो माघ शुक्ला ५ विक्रम संवत् १८२१ में लिखित व० रायमल की 'इन्द्रध्वज विधान महोत्सव पत्रिका' के उल्लेखों से सिद्ध है ही किन्तु इसका संशोधनादि कार्य वि० सं० १८२३ तक चलता रहा, जैसा कि श्रावण कृष्णा वि० सं० १५२३ की चंदेरी में लिखी त्रिलोकसार को प्रति के निम्नलिखित उल्लेख से स्पष्ट है :
__ "यह टीका खरड़ा की नकल उतरी है। मल्लजी कृत पीठबंध आदि सम्पूर्ण नहीं भई है । मुल को अर्थ सम्पूर्ग प्राय गयो है । परन्तु साधि पर मल्न जी को फरि उत्तरावगी छ । वी छनि होवा के वास्ते जेते खरड़ा ही उतार लिया है । तिहिस्यों पीर परती घहींस्यौं उतरवाज्यो मती।"
उक्त विश्लेषगा रे यह निष्कर्ष निकलता है कि इसकी रचना (रफ कापी) तो विक्रम संवत् १८१५ में हो चुकी थी किन्तु इसका संशोधनादि कार्य वि० सं० १८२३ तक चलता रहा।
१ नोम्मटसार भापाटीका सम्यग्ज्ञानचंद्रिका का ही एक अंग है। ३ त्रि भाटी० परिशिष्ट, २१ ३ देखिए प्रस्तुत ग्रंथ, ७६ * स० चं० पी०, ६१