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रचनाओं का परिचयात्मक अनुशीलम
१४५ लोभ संवरण नहीं कर सके । मोक्षमार्ग प्रकाशक की रचना और पुरुषार्थसिद्धयुपाय भाषाटीका की रचना साथ-साथ चल रही थी। मोक्षमार्ग प्रकाशक के नौवें अधिकार में सम्यग्दर्शन के विश्लेषण पर पुरुषार्थसिद्धयुपाय की व्याख्याएँ छाई हुई हैं । दुर्भाग्यवश दोनों ही ग्रंथ अपूर्ण रह गए।
पंडित दौलतराम ने पंडितजी का अवसान जयपुर में बताया है व उनकी अधुरी पुरुषार्थ सिद्धपाय भाषाको दीवाना तान दजी की प्रेरणा से जयपुर में ही पूर्ण करने की चर्चा की है । अत: इस ग्रंथ की रचना जयपुर में ही हुई है ।
___ ग्रन्थ का प्रारम्भ मंगलाचरण से हुआ है। मंगलाचरण में देव-शास्त्र-गुरु को स्मरण कर निश्चय और व्यवहार का स्वरूप न जानने वाले अज्ञानियों एवं निश्चय-व्यवहार वा स्वरूप जानने वाले शानियों की चर्चा एक छन्द में की गई है। तदुपरान्त मूल ग्रन्थ की भाषाटीका प्रारम्भ होती है, जिसका विभाजन इस प्रकार है :
(१) उत्थानिका (२) सम्यग्दर्शन अधिकार
मोक्षमार्ग प्रकाशक के सातवें अधिकार में निश्चयाभासी, व्यवहारभासी उभयाभासी एवं सम्यक्त्व के सम्मुख मिश्याष्टियों का विस्तृत वर्णन है एवं निश्चय-व्यवहार के सही स्वरूप को समझ कर मात्मा के शुद्ध स्वरूप को पहिचानने की प्रेरणा दी गई है। पुरुषार्थसिद्युपाय भाषाटीका में मंगलाचरण का छन्द निम्नानुसार है :
कोऊ नय निश्चय से आत्मा को शुद्ध मान, भये हैं सुछन्द न पिछाने निज शुद्धता। कोक व्यवहार दान, शील, तप, भाष को ही, प्रातम को हित जान, छोड़त न मुद्धता । कोऊ व्यबहार नय निश्चय के मारग को, भिन्न-भिन्न पहिचान कर निज उद्धता । जब जाने निश्चय के भेद व्यवहार सब, कारण है उपचार माने सब बुद्धता ॥1