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रचनाओं का परिचयात्मक अनुशीलन
१४७ हिंसा के रूप में सिद्ध किया गया है । सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह को अहिंसा के रूपान्तर के रूप में देखा गया है । अहिंसा के स्वरूप पर विचार करते हुए रात्रिभोजन, अनछना पानी काम में लेने आदि हिंसामूलक क्रियाओं पर तर्कसंगत प्रकाश डाला गया है । इस अधिकार की संक्षिप्त रूपरेखा निम्नलिखित चार्ट द्वारा समझी जा सकती है :
श्रावक के बारह व्रत
पांच प्रगत
तीन गुणवत
चार शिक्षाबत
दिग्द्रत
देशवत अनधंदण्डवत
अहिंसागुन्नत सत्यागुबत प्रचीर्याग्गुव्रत ब्रह्मचर्याणुगत परिग्रह
परिमाणाणुनत
- - सामायिकवत प्रोषधोपवासयत भोगोपभोग अतिथिसंविभागवत
परिमाणवत सल्लेखमा अधिकार में समाधिमरग का वर्णन है। सल्लेखना समाधिमरण को कहते हैं। जब कोई भी व्रती जीव अपना मरण समय निकट जान लेता है तब वह शान्ति से प्रात्मध्यानपूर्वक बिना आकुलता के मरण स्वीकार कर लेता है, यही समाधिमरण है। इस अधिकार में समाधिमरण की विधि विस्तार से बताई गई है, जिसमें कषायों की शांति पर विशेष बल दिया गया है। कुछ लोग सल्लेखना को आत्मघात के रूप में देखते हैं । इसमें सल्लेखना और प्रात्मघात का भेद स्पष्ट किया गया है तथा सल्लेखना की आवश्यकता और उपयोगिता पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।
अतिचार अधिकार में सम्यग्दर्शन, श्रावक के बारह व्रतों एवं सल्लेखना के अतिचारों का वर्णन है । प्रत्येक के पांच-पांच अतिचार बताये गए हैं । इस प्रकार कुल ७० अतिचारों का वर्णन है।
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