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रचनाम्रों का परिचयात्मक अनुशीलन
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उसके अनुसार आठ अधिकार मात्र भूमिका हैं । यह तो नहीं कहा जा सकता है कि मोक्षमार्ग प्रकाशक पूर्ण हो गया होगा पर अनुमान ऐसा है कि इससे आगे कुछ न कुछ अवश्य रखा गया था, जो कि आज उपलब्ध नहीं है ।
मेरा अनुमान है कि इस ग्रंथ का अप्राप्तांश उनके अन्य सामान के साथ तत्कालीन सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया होगा और यदि उनका जब्ती का सामान राज्यकोष में सुरक्षित होगा तो निश्चित ही बाकी का मोक्षमार्ग प्रकाशक भी उसमें होना चाहिए ।
वर्तमान प्राप्त मोक्षमार्ग प्रकाशक नौ विभागों में विभक्त है । विभागों के नामकरण में भी दो रूप देखने में आते हैं - अधिकार और अध्याय । डॉ॰ लालबहादुर शास्त्री ने उनके द्वारा अनुवादित एवं संपादित तथा भा० दि० जैन संघ, मथुरा से प्रकाशित मोक्षमार्ग प्रकाशक में अध्याय शब्द का प्रयोग किया है जब कि अन्य सभी प्रकाशनों में अधिकार शब्द का प्रयोग मिलता है । पंडित टोडरमल की मूल प्रति में भी अधिकार शब्द ही मिलता है तथा अन्य हस्तलिखित प्रतियों में भी अधिकार शब्द का प्रयोग हुआ है । डॉ० लालबहादुर शास्त्री ने यह परिवर्तन किस आधार पर किया है, इस संबंध में उन्होंने कोई उल्लेख नहीं किया है । ग्रंथकार ने प्रत्येक अधिकार के अन्त में तो 'अधिकार' शब्द का स्पष्ट प्रयोग किया ही है, किन्तु प्रकरणवशात् बीच में भी इस प्रकार के उल्लेख किए हैं। जैसे "सो इन सवनि का विशेष आगे कर्म अधिकार विषै लिखेंगे तहाँ जानना । " डॉ० लालबहादुर शास्त्री ने भी प्रकरण के बीच में प्राप्त उल्लेखों में
१ वीरवाणी : टोडरमलांक २०-२१
२ मो०
१० मा० प्र०
(क) सस्ती ग्रंथमाला, दिल्ली
( ख ) अनन्तकीर्ति ग्रंथमाला, बम्बई
(ग) श्री दि० जेन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ़
(घ) श्री टोडरमल ग्रंथमाला, जयपुर
मो० मा० प्र०, ४४