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पंडित टोडरमल : व्यक्तित्य और कर्तृत्व यह टोका भी सम्यग्ज्ञानचंद्रिका के समान विवेचनात्मक गद्यशैली में लिखी गई है । उसके समान इसके प्रारंभ में भी पाठिका है, जो कि प्राधुनिक भूमिका का ही पूर्व प है । यद्यपि यह टीका संस्कृत टीका के अनुकरण पर लिखी गई है तथापि यह मात्र अनुवाद ही नहीं है, किन्तु गूढ़ विषयों को स्पष्टता के लिए यथास्थान समुचित विस्तार किया गया है । आवश्यकतानुसार विषय का रांकोच भी किया गया है, जैसा कि टीकाकार ने स्वयं स्वीकार किया है । रचनाशली सरल, सुबोध एवं प्रवाहमयी है ।
समोसरण वर्णन
तीर्थंकर भगवान को धर्मसभा का वर्णन करने वाली यह रचना अब तक अज्ञात थी। श्री ऐलका पन्नालाल सरस्वती भवन, बम्बई में एक त्रिलोकसार टीका की प्रति प्राप्त हई है 1 यह प्रति मार्गशीर्ष कृष्णा १३ वि० सं० १८३३ की लिखी हुई है । इसे रायमल्लजी ने चंदेरी में लिपिकार वैद्य फैजुल्लाखों द्वारा लिखाया था । प्रति के अन्त में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है । 'समोसरमा वर्णन' नामक यह रचना त्रिलोकसार की इसी प्रति के अन्त में प्राप्त हुई है। अभी तक इसका प्रकाशन नहीं हुअा है ।
पंडित टोडरमन ने इसके नाम के रूप में 'समोराररण' और 'समवसरणा' दोनों शब्दों का प्रयोग किया है । ग्रंथ के प्रारंभ और अन्त में 'समोसरग' शब्द का प्रयोग है तथा मंगलाचरण के दोहा में 'समवसरण' का । तीर्थकर भगवान की धर्मसभा के लिए दोनों ही
१ "तिनकी संस्कृत टीका का अनुसार लई इस भाषा टीका विष अर्थ लिखौंगा ।
कहीं कोई अर्थ न भासंगा, ताकी न लिम्घौगा। कहीं समझाने के अर्थ बधाय करि लिग्तीगा ।"
- नि. भा. टी. परिणिप्ट २ वि भा० टी हस्तलिखित प्रति, ३१६
- ऐलक पन्नालाल दि जैन सरस्वती भवन, बम्बई । वहीं, ३२७ ४ "असरण सरन जिनेस को, समवसरन शुभ यान"