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NEET पर
काल
रचनाओं का परिचयात्मक अनुशीलन
इस टीका का नाम पंडित टोडरमल ने कुछ नहीं दिया। पंडित परमानन्द शास्त्री इसे भी सम्यग्ज्ञानचंद्रिका में सम्मिलित मानते हैं, पर ग्रंथकार ने स्पष्ट रूप से कई स्थानों पर लिखा है कि 'सम्यग्ज्ञानचंद्रिका' गोम्मटसार जीवकाण्ड, गोम्मटमार कर्मकाण्ड, नविध सार और क्षपणासार को टीका का नाम है | कहीं भी त्रिलोकमार के नाम का उल्लेख नहीं किया है। लब्धिसार-क्षपणासार भापाटीका समाप्त करते हुए लिखा है, "इति श्रीमत् लब्धिसार बा क्षपणासार साहित गोम्मटसार शास्त्र की सम्यग्ज्ञानचंद्रिका भाषाटीका सम्पूर्ण ।' प्रतः यह तो निश्चित ही है कि त्रिलोकसार भाषाटोका' सम्यम्ज्ञानचंद्रिका का अंग नहीं है।
हिन्दी साहित्य प्रसारक कार्यालय, गिरगांव, बम्बई से प्रकाशित त्रिलोकसार के मुखपृष्ठ पर 'भाषा बचनिका' शब्द का उल्लेख है किन्तु उन्होंने इस नाम का उल्लेख किए ग्राधार पर किया है इसका पता नहीं चलता है, जब कि उन्हीं के द्वारा प्रकाशित इस ग्रंथ की
' मो० मा०प्र० प्रस्तावना, २८ ३. श्रीमत् लब्धिसार वा क्षपणासार सहित श्रुत गोमटसार ।
ताकी सम्यग्ज्ञानचंद्रिका भाषामय टीका विस्तार 11 प्रारंभी पूरन हुई, भए समस्त मंगलाचार । सफल मनोरथ भयो हमारो, पायो ज्ञानानन्द अपार ।।१।। या विधि गोम्मटसार लब्धिसार ग्रंथनि की,
भिन्न भिन्न भाषाटीका कौनी अर्थ गायकै । इनिक परस्पर सहायकपनौ देख्यो,
___ तातै एक करि दाई हम लिनका मिलाइक ।। सम्माज्ञानचंद्रिका धयों है पाको नाम,
सोई होत है सफल ज्ञानानन्द उपजाम के। कलिकाल रजनी में अर्थ को प्रकाश कर., यात निज काज कीजं इप्ट भाव भावकं ।।३०।।
- स. चं० प्र० १ श्री दि. जैन बड़ा मंदिर तेरापंथियान, जयपुर में प्राप्त ललिखित प्रति
(वि० सं० १८५०), पृ. २८५
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