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पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व
दिगम्बर जैनियों में तेरापंथियों की संख्या ही सर्वाधिक है । ये सारे उत्तर भारत में फैले हुए हैं ।
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पंडित टोडरमल के बाद उनके द्वितीय पुत्र पंडित गुमानीराम ने शिथिलाचार दूर करने के उद्देश्य से उनसे भी कठोर कदम उठाए । उन्होंने पूजन-पद्धति में आए बाह्याडम्बर को बहुत कम कर दिया एवं धर्म के नाम पर होने वाले राग-रंग को समाप्तप्रायः करने का यत्न किया। मंदिरों में होने वाले लौकिक कार्यों पर प्रतिबंध लगाया । धर्मायतनों की पवित्रता कायम रखने के लिए उन्होंने एक प्राचार संहिता बनाई। उनके नाम पर एक पंथ चल पड़ा जिसे गुमानपंथ कहा जाता है। इस पंथ का एक मंदिर जयपुर में है जो गुमानपंथ की गतिविधियों का केन्द्र था। इस पंथ के और भी मंदिर जयपुर में और जयपुर के आस-पास के स्थानों में हैं
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पंडित गुमानीरामजी की बनाई गुमानगंथी आचार संहिता की कुछ बातें निम्नलिखित हैं :
( १ ) सूर्योदय या काफी प्रकाश होने के पहले मंदिरजी की कोई क्रिया न करें ।
( २ ) जो सप्त व्यसन का त्यागी हो, वही श्रीजी' का स्पर्श करे ।
, यह मंदिर घी वालों के रास्ते में स्थित है एवं दीवान भदीचंदजी का मंदिर कहलाता है। इसका निर्माण दीवान रतनचंदजी ने कराया था और अपने भाई के नाम पर इसका नाम प्रचलित क्रिया था ।
गुमानपंथी मंदिर के वर्तमान व्यवस्थापक श्री सरदारमलजी साह के अनुसार गुमानपंथ के मंदिर निम्न स्थानों पर हैं :
जयपुर में बड़े दीवानजी का मंदिर, छोटे दीवानजी का मंदिर, दीवानजी की नसियाँ, मंदिर श्री बुधचंदजी बज, मंदिर श्री बज बगीची ।
जयपुर के अतिरिक्त आमेर, सांगानेर, जगतपुरा, माधोराजपुरा, लाम्बा यदि स्थानों पर भी हैं।
३ भगवान की मूर्ति को श्रीजी भी कहते हैं ।