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पंधित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व प्राचीन है। अतः अधिक संभावना यही है कि क्रांतिकारी सुधारवादी दिगम्बर तेरापंथियों, जिन्होंने भट्टारकों के विरुद्ध सफल आध्यात्मिक क्रांति की थी, के अनुकरण पर श्वेताम्बर तेरापंथियों ने अपना नाम तेरापंथी रखना ठीक समझा हो ।
तेरापंथ के नामकरण के सम्बन्ध में हुए विचार-विमर्श से सही रूप में यह पता तो नहीं चलता कि इस नामकरग का वास्तविक रहस्य क्या है ? किन्तु यह पता अवश्य चलता है कि तेरापंथ प्राचीन शुद्धाम्नायानुसार जन 44 है एवं उसमे आई हुई विकृतियों के विरुद्ध जो आन्दोलन हुया वह सत्रहवीं शती में प्रारंभ हुआ; तथा भट्टारकीन प्रवृत्ति के यथास्थितिबादी लोग इसे एक नवीन पंथ कह कर आलोचना करते रहे और इसे जैन मार्ग से अलग घोपित करते रहे। तेरापंथ को नया पंथ कहकर उपेक्षा करने वालों के प्रति पं० टोडरमल कहते हैं, "जो अपनी बुद्धि करि नवीन मार्ग पकरै, तो यूक्त नाहीं । जो परम्परा अनादिनिधन जैनधर्म का स्वरूप प्रास्वनिवि लिख्या है, ताकि प्रवृत्ति मेटि बीचि में पापी पुरुषां अन्यथा प्रवृत्ति चलाई, सौ ताकौं परम्परा मार्ग कसे कहिए । बहरि ताकौं छोड़ि पुरातन जैन शास्त्रनिविर्षे जैसा धर्म लिख्या था, तैसें प्रवत, तो ताकी नवीन मार्ग कैमैं कहिए।"
पंडित टोडरमल के पूर्व यह आध्यात्मिक पंथ पांच-सात स्थानों पर फैल चुका था । जगह-जगह इसका जोरदार विरोध भी हो रहा था। भट्रारकों और विषम (बीस ) पंथियों के हाथ भक्ति थी, जिसका वे प्रयोग भी करते थे । मंदिरों से निकलवा देते थे, मारपीट भी करते थे । ज्यों-ज्यों इस क्रांति का दमन किया जा रहा था, त्यों-त्यों यह उतने ही उत्साह से बढ़ भी रही थी। पंडित टोडरमल के
मो० मा० प्र०, ३१५ १ 'बीसपंथ' को 'विषमाथ' के नाम से भी जाना जाता है। इसके २०० वर्ष
पूर्व के उल्लेख प्राप्त हैं। वि० सं० १६२८ में कवियर टेकचन्दजी ने 'तीनलोक मंडल पूजा' की प्रणस्ति में 'विषमपंथ' का उल्लेख किया है ।
- जैन निबन्ध रत्नावली, ३४३