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रचनाओं का परिचयात्मक अनुशीलन
___ सम्यग्ज्ञानचंद्रिका के प्रारम्भ में पीठिका है, जिसमें वयं-विषय का पूरा परिचय दिया गया है। पीठिका के प्रारम्भ में ग्रंथ-रचना का प्रयोजन और उपयोगिता. टीकाकार की अपनी स्थिति और मर्यादा, टीका की प्रामाग्गिकता आदि पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। सम्पूर्ण भापाटीका में प्रयुक्त गगिन की मागान्य जानकारी भी पीठिका में प्रस्तुत की गई है।
सम्यग्ज्ञानचंद्रिका की प्रशस्ति में, जो कि लब्धिमार भापाटीका के अन्त में दी गई है, वर्ण्य-विषय का परिचय संक्षेप में इस प्रकार दिया गया है :
करि पोठबंध जीवकाण्ड भाषा कोनी,
ताम गुगास्थान आदि दोयबीस अधिकार है। प्रकृतिसमुत्कीर्तन आदि नवग्रंथान को, - समुदाय कर्मकापड़ ताकी भाषा मार है । ऐसे अनुक्रम मेनी पीछे लीम्यो इनही की,
गंदृष्टिानि को स्वरूप जहां अर्थ भार है। पूरन गोम्मटसार भाषा टीका भई,
याको अवगाहै भव्य पावै भव पार है ।।२८।। समकित उपशम क्षायिक को है बग्वान,
पीछे देण-मकान चरित्र को यवान है । उपशम आपक ए श्रेणी दोए तिनहूं को,
कोयौ है बखान ताको जाने गुणवान है। सयोग अयोगी जिन सिद्धन को वर्णन कर,
लब्धिमार ग्रंथ भयो पूरन प्रमान हैं। इसकी संदृष्टि को लिग्नि के स्वरूप,
ताकी संपूरन भाषा टीका भायो ज्ञान है ।।२६।।