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रखनानों का परिचयात्मक अनुशीलन अायु का भरोसा है नांहीं । ... पूर्व भी याकी टोका करने का इनका मनोर्थ था ही, पीछे हमारं कहने करि वियप मनोर्थ भया, तव शुभ दिन मुहूर्त विष टीका करने का प्रारम्भ सिंधारणां नन विर्ष भया, सो चै तो टीका वणवते गए हम वांचते गए।"
सम्यग्ज्ञानचंद्रिका की रचना का उद्देश्य स्वपर-हित ही रहा है । स्वहित का प्राशय उपयोग की पवित्रता एवं ज्ञानवृद्धि से है । सामान्य जिज्ञासू जनों को तत्त्वज्ञान की प्राप्ति सहज एवं सरलता से हो सके, यह परहित का भाव है। सम्मान, यश, धनादि की प्राप्ति का कोई योजल इतकी चना भी नहीं था। मुल ग्रंथ तो प्राकृत भाषा में हैं और उनकी प्राचीन टीका संस्कृत और कन्नड़ में हैं । जिन लोगों को संस्कृत, प्राकृत और कन्नड़ का ज्ञान नहीं है, उनके हित को लक्ष्य में रख कर इस टीका की रचना हुई है। इस बात को सम्यग्ज्ञानचंद्रिका की पीठिका एवं प्रशस्ति में पंडित टोडरमल ने स्पष्ट किया है 1
सम्यग्ज्ञान चंद्रिका माघ शुक्ला पंचमी. वि० सं० १८१८ में बनकर तैयार हुई थी, जैसा कि प्रशस्ति में लिखा है :
"संवत्सर अप्टादश युक्त, अष्टादश शत लौकिक युक्त।
माघ शुक्ल पंचमि दिन होत, भयो ग्रंथ पूरन उद्योत ।।" किन्तु अन्य उल्लेख ऐसे भी प्राप्त हुए हैं कि यह टीका वि० सं० १८१५ में बन चुकी थी । दि० जैन बड़ा मंदिर तेरापंथियान, जयपुर में प्राप्त भूधरदास के 'चर्चा समाधान' नामक हस्तलिखित ग्रन्थ पर
आसोज कृष्णा ५ वि० सं० १२१५ का लिखित एक उल्लेख प्राप्त हुआ है, जिसमें लिखा है कि पंडित टोडरमल ने गोम्मटसार आदि ग्रन्थों की साठ हजार श्लोक प्रमाण टीका बनाई है। इससे प्रतीत
१ परिशिष्ट १ २ स. चं० पी०,३
स. चं० प्र०, छन्द १६-२००२१ ४ देखिए प्रस्तुत ग्रंथ, ७६