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पूर्व-धार्मिक व सामाजिक विचारधाराएं और परिस्थितियां (३) जिन-प्रतिमा के चरणों पर चन्दन, केसर आदि चर्चित
न करें। ( ४ ) गंधोदक लगा कर हाथ धोवें । (५) भगवान का पूजन खड़े होकर करें । (६) पूजन में फलों में नारियल और बादाम यादि - सूखे फल
ही चढ़ावें । उन्हें भी साबित न चढ़ावें । (७) रात को जिन प्रतिमा के पास दीपक न जलावें । (८) चमड़े की व ऊनी चीजें मंदिर में न ले जावें । (६) मंदिर में बुहारी देना, पूजा के बर्तन मांजना, बिछायत
विछाना आदि मंदिर का सम्पूर्ण कार्य श्रावक स्वयं
अपने हाथों से करें, माली या नौकर आदि से न करावें । (१०) मंदिरजी की बस्तु लौकिक काम में न लावें।
पंडित गुमानीराम की बताई गई कई बातों का पालन तो प्राय: सभी तेरापंथी मंदिरों में होता है, पर कुछ बातें जो बहुत कठोर थीं वे चल न सकी। बैसे गुमानपंथ का पंथ के नाम से कोई विशेष प्रचार नहीं हुआ है और न ही पंडित गुमानीराम का कोई पंथ चलाने का उद्देश्य ही था। वे तो बाह्याडंबर और हिंसामलक प्रवृत्ति के विरुद्ध थे । उनके विरोधियों ने ही उनके बताए रास्ते को 'गुमानपंथ' कहना प्रारंभ कर दिया था और वे उनमें श्रद्धा रखने वालों को 'गुमानपंथी' कहने लगे थे। ___ इस तरह हम देखते हैं कि पंडितजी के पूर्व एवं समकालीन धार्मिक एवं सामाजिक परिस्थितियाँ विपम थीं और अन्य भारतीय धर्मों की भांति जैनधर्म भी कई शास्त्रा-उपशाखाओं में विभक्त था । जिस दिगम्बर जैन सम्प्रदाय में पंडितजी ने जन्म लिया उसमें भी भट्टारकों का साम्राज्य था और दर्शन का मूल तत्त्व लुप्तप्रायः था। कहीं-कहीं पं० बनारसीदास द्वारा प्रज्वलित अध्यात्मज्योति टिमटिमा रही थी । पंडित टोडरमल ने उसमें तेल ही नहीं दिया अपितु उसे शतगणी करके प्रकाशित किया।
१ भगवान के अभिषेक के जल को गंधोदक कहते हैं।